Friday, 5 September 2025

व्यक्ति सदा प्रसन्न रहे, और चिंतामुक्त जीवन जीये तो दीर्घायु और स्वस्थ होता है

 व्यक्ति सदा प्रसन्न रहे, और चिंतामुक्त जीवन जीये तो दीर्घायु और स्वस्थ होता है। सदा स्वस्थ रहो। स्वस्थ रहोगे तो आयु अपने आप लम्बी होगी। मेरी प्रसन्नता तो परमात्मा के स्मरण में है। परमात्मा ही एकमात्र सत्य है। यह मेरा निजी अनुभव है, कोई सुनी-सुनाई बात नहीं। कितना भी भटक लो, अंततः इसी निष्कर्ष पर पहुँचोगे। जब से उन के समक्ष सिर झुका है, तब से झुका हुआ ही है; उठा ही नहीं है। . व्यक्ति सदा प्रसन्न रहे और चिंतामुक्त जीवन जीए तो दीर्घायु होता है| यह बात सिद्ध की है भारत की प्रथम कार्डिओलोजिस्ट पदमविभूषण डॉ. एस. पदमावती (जन्म: २० जून १९१७) ने जिनका २९ अगस्त २०२० को १०३ वर्ष की आयु में निधन हो गया| वे भारत में 'मदर ऑफ कार्डिओलोजी' के नाम से विख्यात थीं| ९५ वर्ष की आयु तक वे नित्य नियमित तैरती थीं और १०३ वर्ष की आयु तक मरीज देखती थीं, लेख लिखती थीं, नियमित व्यायाम करती थीं, और मेडिकल सेमिनारों में भाग लेती थीं| नित्य १२ घंटे तक वे अपना काम करती थीं| जो नाम और जो सम्मान उनको मिला उतना डॉ. बीसी रॉय के पश्चात किसी भी भारतीय चिकित्सक को नहीं मिला है| उनका लेक्चर सुनकर देश के नामी-गिरामी डॉक्टर खुद को धन्य समझते थे| वे सभी से कहती थीं कि सदा स्वस्थ रहो| स्वस्थ रहोगे तो आयु अपने आप लम्बी होगी|

ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमः शिवाय !!
कृपा शंकर
६ सितंबर २०२१

"नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च। मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद॥"

 "नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च। मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद॥"

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सारी सृष्टि कृष्णमय है, वे ही यह विश्व बन गए हैं; कोई अन्य है ही नहीं। मेरे विचार अधिकांश लोगों से कुछ हट कर हैं। अपनी श्रद्धा, विश्वास और मान्यता के अनुसार मेरा अपना जीवन भगवान को पूरी तरह समर्पित है। मेरा समर्पण पूर्ण हो, उसमें कोई कमी न रहे। भगवान का प्राकट्य मेरे चैतन्य के उच्चतम शिखर पर हो। मेरी सम्पूर्ण चेतना ही कृष्णमय हो। यही भगवान से प्रार्थना है।
आज और कल अधिक से अधिक समय भगवान श्रीकृष्ण के ध्यान में ही बीते।
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"वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्। देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्॥"
"वंशी विभूषित करा नवनीर दाभात्,
पीताम्बरा दरुण बिंब फला धरोष्ठात्।
पूर्णेन्दु सुन्दर मुखादर बिंदु नेत्रात्,
कृष्णात परम् किमपि तत्व अहं न जानि॥"
"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणत क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:॥"
"नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च, जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः॥"
"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्। यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्॥"
"कस्तुरी तिलकम् ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम् ,
नासाग्रे वरमौक्तिकम् करतले, वेणु करे कंकणम्।
सर्वांगे हरिचन्दनम् सुललितम्, कंठे च मुक्तावलि,
गोपस्त्री परिवेष्ठितो विजयते, गोपाल चूड़ामणी॥"
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥"
६ सितंबर २०२३

Wednesday, 3 September 2025

कर्मफलों की प्राप्ति, पुनर्जन्म और मरणोपरांत गति -- इनमें भगवान का कोई हस्तक्षेप नहीं होता

 कर्मफलों की प्राप्ति, पुनर्जन्म और मरणोपरांत गति -- इनमें भगवान का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। ये सब जीवात्माओं को अपने-अपने कर्मों के अनुसार प्रकृति ही प्रदान करती है। जो लोग दूसरों के साथ छल करते हैं, उन्हें प्रकृति कभी क्षमा नहीं करती। किसी को विश्वास में लेकर उसके साथ छल करना अक्षम्य पाप है।

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एक बार एक स्थान पर बहुत सारे भिखारी भीख मांग रहे थे। उन भिखारियों में से अनेक तो अपने पूर्व जन्म में बहुत बड़े बड़े सरकारी अधिकारी रह चुके थे, जिनसे दुनियाँ डरती थी। उनकी पैसे मांगने की आदत नहीं गयी तो इस जन्म में प्रकृति ने उनकी नियुक्ति यहाँ कर दी।
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भगवत्-प्राप्ति के लिए भगवान ही साधन हैं। उनकी शरणागत होकर, और उन से प्रार्थना कर के ही हम उन्हें प्राप्त कर सकते हैं।
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ सितंबर २०२३

परमात्मा का साक्षात्कार हमें स्वयं करना होगा।

 जिस तरह दूसरों के द्वारा किए गए भोजन से हमारा पेट नहीं भरता, वैसे ही दूसरों की तपस्या और साक्षात्कार से हमें मोक्ष नहीं मिल सकता। परमात्मा का साक्षात्कार हमें स्वयं करना होगा।

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कुछ मज़हब और रिलीजन कहते हैं कि परमात्मा के एक ही पुत्र है, या एक ही पैगम्बर है, सिर्फ उसी में आस्था रखो, तभी स्वर्ग मिलेगा, अन्यथा नर्क की शाश्वत अग्नि में झोंक दिए जाओगे। कुछ सम्प्रदाय या समूह कहते हैं कि हमारे फलाँ फलाँ सदगुरु ने या महात्मा ने ईश्वर का साक्षात्कार कर लिया है, अतः उनका ही ध्यान करो, और उनकी ही भक्ति करो, उन्हीं में आस्था रखो, उनके आशीर्वाद मात्र से ही मोक्ष मिल जाएगा, आदि आदि।
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वेदज्ञ महात्माओं के सत्संग में उन्हीं वेदज्ञ महात्माओं के मुख से सुना है कि ये सब बातें वेद-विरुद्ध हैं, जो हमें कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकतीं। फिर भी हम दूसरों के पीछे-पीछे मारे-मारे फिरते हैं कि संभवतः उनके आशीर्वाद से हमें परमात्मा मिल जाए। पर ऐसा होता नहीं है। वेदों के ऋषि तो कहते हैं कि परमात्मा का अपरोक्ष साक्षात्कार सभी को हो सकता है, मोक्ष के लिए स्वयं का किया हुआ आत्म-साक्षात्कार ही काम का है, दूसरे का साक्षात्कार हमें मोक्ष नहीं दिला सकता।
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कृष्ण यजुर्वेद शाखा के श्वेताश्वतरोपनिषद में जगत के मूल कारण, ओंकार साधना, परमात्मतत्व से साक्षात्कार, योग साधना, जगत की उत्पत्ति, संचालन व विलय के कारण, विद्या-अविद्या, मुक्ति, आदि का वर्णन किया गया है। ध्यान योग साधना का आरम्भ वेद की इसी शाखा से होता है। बाद में तो इसका विस्तार ही हुआ है।
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जिसने परमात्मा को जान लिया उसे किसी का भय नहीं हो सकता | विराट तत्व को जानने से स्थूल का भय, और हिरण्यगर्भ को जानने से सूक्ष्म का भय नहीं रहता है। किन्हीं ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय आचार्य के मार्गदर्शन में उपनिषदों व श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करो, और इनमें दी हुई पद्धति से ध्यान साधना करो, सारे संदेह दूर हो जायेंगे। आत्म-साक्षात्कार की विधियाँ उपनिषदों में दी हुई हैं, बिना आत्म-साक्षात्कार के मोक्ष का कोई उपाय या short cut नहीं है।
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बहुत शक्तिशाली प्रार्थना है यह --- "श्रीमद्रामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये। श्रीमते रामचंद्राय नमः !!" इस मंत्र से भगवान श्रीराम को नमन करते ही तुरंत प्रभाव पड़ता है।
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
०४ सितम्बर २०२३

सनातन-धर्म शाश्वत और सनातन है, सदा अमर ही रहेगा ---

 सनातन-धर्म शाश्वत और सनातन है, सदा अमर ही रहेगा ---

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सारी सृष्टि ही सनातन धर्म के सिद्धांतों से चल रही है। सनातन धर्म को नष्ट करने का अर्थ है -- इस सृष्टि का ही विनाश। सनातन को नष्ट करने की सोचने वाले असुर क्या सृष्टिकर्ता से भी बड़े हैं? उन सब असुरों का नाश हो जाएगा, लेकिन सनातन शाश्वत है, सदा अमर रहेगा।
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इस संक्षिप्त लेख में पहिले मैं सूक्ष्म की नहीं, सिर्फ स्थूल की ही बात करूंगा जिसे हर कोई समझ सकता है। इस सृष्टि को स्थूल रूप से चार सिद्धान्त चला रहे हैं। ये चारों ही स्थूल सिद्धान्त -- सनातन धर्म हैं। इन चारों सिद्धांतों के बिना सृष्टि नहीं चल सकती। वे चारों स्थूल सिद्धान्त हैं ---
(१) आत्मा की शाश्वतता :--- हरेक प्राणी एक शाश्वत आत्मा है, भौतिक देह नहीं। क्रमिक विकास में उसे यह मनुष्य देह मिलती है।
(२) कर्मफलों का परिणाम :--- हमारी सोच, हमारे विचार, हमारे संकल्प, और हमारी कामनाएँ ही हमारे कर्म हैं। ये हमारे अवचेतन मन में सुरक्षित रूप से संरक्षित होते रहते हैं। इनसे कोई बच नहीं सकता। भगवान श्रीकृष्ण ने करुणावश अपनी परम कृपा कर के कर्मफलों से मुक्ति का उपाय गीता में बताया है। जिसकी प्रज्ञा स्थिर है, वह स्थितप्रज्ञ व्यक्ति ही भगवान की परम कृपा से जीवनमुक्त है। ऐसी अवस्था वाले महात्मा ही निर्विकल्प समाधि में रहते हैं।
(३) पुनर्जन्म --- हरेक आत्मा शाश्वत है जिसे एक शरीर छूटते ही दूसरा शरीर उसके कर्मानुसार मिल जाता है। सृष्टि अनंत है, अनंत लोक हैं। किस व्यक्ति का पुनर्जन्म कहाँ होना है यह काम प्रकृति ही तय करती है। पुनर्जन्म के बिना सृष्टि नहीं चल सकती। यह हमारे धर्म का मुख्य सिद्धान्त है।
(४) ईश्वर के अवतारों में आस्था --- इस विषय पर मैं बहुत बार लिख चुका हूँ। अब और लिखने का धैर्य नहीं है। मेरा स्वास्थ्य इस समय और लिखने की अनुमति नहीं दे रहा है।
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उपरोक्त चारों सिद्धांतों पर, जो शत-प्रतिशत सत्य हैं, -- सनातन धर्म टिका हुआ है। पूरी सृष्टि ही इन से चल रही है। अतः सनातन धर्म अमर है। इसे कोई नष्ट नहीं कर सकता। सूक्ष्म रूप से सनातन धर्म की बात करें तो मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण दिये हैं, जिनको धारण करना ही धर्म है।
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सनातन धर्म का उद्देश्य :--- सनातन धर्म का एकमात्र उद्देश्य और लक्ष्य भगवत्-प्राप्ति है। मेरी दृष्टि में अन्य कोई उद्देश्य नहीं है।
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इस समय और लिखने में असमर्थ हूँ। जब शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक स्वास्थ्य अनुमति देगा तब और लिखूंगा। आप सभी को शुभ कामनाएँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ सितंबर २०२३

श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः ---

 श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः --- वास्तव में सत्यनिष्ठा से देखा जाये तो इस संसार में सबसे अधिक सुंदर और सबसे अधिक प्रिय कुछ है तो वे गुरु-महाराज के चरण-कमल हैं। एक बार उनके दर्शन हो जायें तो अन्य कुछ देखने का मन नहीं करता। यह एक अति गूढ और गोपनीय आध्यात्मिक विषय है जिस पर कुछ भी लिखने के लिए बहुत अधिक समय चाहिए। भगवान से प्रेरणा मिलेगी तो फुर्सत से इस विषय पर लिखूंगा। .

चिदाकाश (चित्त रूपी आकाश) में स्वयं की अनंतता का ध्यान करो। वह अनंतता ही हमारा वास्तविक रूप है। हमारे गुरु हम से पृथक नहीं हो सकते, वे हमारे साथ एक हैं। वे हमारा सारा अज्ञान धीरे धीरे हर लेंगे, वे हरिः हैं, वे ही मुक्ति के द्वार हैं।
हरिः ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ सितंबर २०२१

मेरी आयु अनंत (Infinite) है, लेकिन अब और धैर्य नहीं है, हरिःकृपा तुरंत इसी समय फलीभूत हो ---

 मेरी आयु अनंत (Infinite) है, लेकिन अब और धैर्य नहीं है, हरिःकृपा तुरंत इसी समय फलीभूत हो ---

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संसार मुझे इस शरीर के रूप में ही जानता है, जिसका जन्म ग्रेगोरियन कलेंडर (अंग्रेज़ी तिथि) के अनुसार ३ सितंबर को हुआ था। घर-परिवार के लोग इस शरीर का जन्म-दिवस भारतीय पंचांग के अनुसार भाद्रपद अमावस्या को मनाते हैं। लेकिन वास्तव में मैं यह शरीर नहीं, एक शाश्वत आत्मा हूँ, जिसकी आयु एक ही है, और वह है -- "अनंतता"। मेरी आयु अनंत (Infinity) है।
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इस शरीर का जन्म झुंझुनू में हुआ था, उस दिन वहाँ के विश्व प्रसिद्ध श्रीराणीसती जी मंदिर ​का वार्षिक आराधना दिवस भी होता है। किसी से किसी भी तरह की अपेक्षा बड़ी दुःखदायी होती है। संसार में किसी से भी किसी भी तरह की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। गीता में दिए भगवान के वचनों में मेरी पूर्ण श्रद्धा है --
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"यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्॥९:२७॥
शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः।
संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि॥९:२८॥
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्॥९:२९॥
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः॥९:३०॥"
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अर्थात् -- हे कौन्तेय ! तुम जो कुछ कर्म करते हो, जो कुछ खाते हो, जो कुछ हवन करते हो, जो कुछ दान देते हो और जो कुछ तप करते हो, वह सब तुम मुझे अर्पण करो॥
इस प्रकार तुम शुभाशुभ फलस्वरूप कर्म-बन्धनों से मुक्त हो जाओगे; और संन्यासयोग से युक्तचित्त हुए तुम विमुक्त होकर मुझे ही प्राप्त हो जाओगे॥
मैं सम्पूर्ण प्राणियों में समान हूँ। उन प्राणियों में न तो कोई मेरा द्वेषी है और न कोई प्रिय है। परन्तु जो भक्तिपूर्वक मेरा भजन करते हैं, वे मेरे में हैं और मैं उनमें हूँ॥
यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है, वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है॥
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Whatever thou doest, whatever thou dost eat, whatever thou dost sacrifice and give, whatever austerities thou practisest, do all as an offering to Me.
So shall thy action be attended by no result, either good or bad; but through the spirit of renunciation thou shalt come to Me and be free.
I am the same to all beings. I favour none, and I hate none. But those who worship Me devotedly, they live in Me, and I in them.
Even the most sinful, if he worship Me with his whole heart, shalt be considered righteous, for he is treading the right path.
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
झुंझुनू (राजस्थान)
३ सितंबर २०२३

विश्व के हिन्दुओ जागृत हों, अपने अस्तित्व और धर्म की रक्षा का समय आ गया है ---


सनातन धर्म को डेंगू, मलेरिया व कोरोना की बीमारी बताने वाले और सनातन धर्म को समाप्त करने की घोषणा करने वाले राक्षसों का सर्वनाश होगा। देश की अनेक संवैधानिक संस्थाएँ भी सनातन धर्म को नष्ट करना चाहती हैं। वे सब काल के गाल में समा जाएँगी। धर्म की रक्षा स्वयं भगवान करेंगे, गीता में उन्होने वचन दिया है --
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्॥४:७॥"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥४:८॥"
अर्थात् -- हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं स्वयं को प्रकट करता हूँ॥
साधु पुरुषों के रक्षण, दुष्कृत्य करने वालों के नाश, तथा धर्म संस्थापना के लिये, मैं प्रत्येक युग में प्रगट होता हूँ॥
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जो भगवान के उपकरण नहीं बनेंगे, उनका भी न्याय होगा। हिंदुओं को कोई भी कुछ भी गाली देकर या बुरा बोल कर चला जाता है। क्या हिंदुओं की आत्मा मर गई है, जो उन्हें सहन करती हैं? अगला चुनाव हमारी अस्मिता और आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए युद्ध होगा।
गलती किसी अन्य की नहीं, हम हिंदुओं की ही है। अपना अपमान हम समझते ही नहीं हैं। हिंदुओं को सारे हिन्दू-द्रोही महामूर्ख समझते हैं। हम है भी मूर्ख ही, जो स्वयं के घोर अपमान पर भी चुप हो जाते हैं। इतनी आत्म-हीनता नहीं होनी चाहिए। चुनाव के दिनों में जो ठग लोग गले में जनेऊ डालकर, माथे पर तिलक लगाकर, और स्वयं को ब्राह्मण बताकर हमें मूर्ख बनाते हैं, उनके बहकावे में मत आयें। हमें अपना स्वाभिमान हर कीमत पर जीवित रखना है।

Tuesday, 2 September 2025

आज गणेश-गीता के कुछ अंशों का स्वाध्याय करने का अवसर मिला

 आज गणेश-गीता के कुछ अंशों का स्वाध्याय करने का अवसर मिला| स्वयं गणेश जी ने राजा वरेण्य को जो उपदेश दिए वे गणेश-गीता कहलाते हैं| राजा वरेण्य मुमुक्षु स्थिति में थे, और अपने धर्म और कर्तव्य को बहुत अच्छी तरह जानते थे| इस ग्रंथ के ११ अध्यायों में ४१४ श्लोक हैं| श्रीमद्भगवद्गीता और गणेशगीता में लगभग सारे विषय समान हैं| जो गणेश जी के भक्त हैं उन्हें इस ग्रंथ का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए|

पुनश्च: :----
राजा वरेण्य ने गजानन से प्रार्थना की ..... ‘हे सब शास्त्रों और विद्याओं के ज्ञाता महाबाहु विघ्नेश्वर! आप मेरा अज्ञान दूरकर मुझे मुक्ति के मार्ग का उपदेश कीजिए|’
तब भगवान गजानन ने राजा वरेण्य को योगामृत से भरी ‘श्रीगणेशगीता’ का उपदेश किया। श्रीगणेशगीता को सुनने के बाद राजा वरेण्य विरक्त हो गए और पुत्र को राज्य सौंपकर वन में चले गए| वहां योग का आश्रय लेकर वे मोक्ष को प्राप्त हुए|
"यथा जलं जले क्षिप्तं जलमेव हि जायते| तथा तद्ध्यानत: सोऽपि तन्मयत्वमुपाययौ||"
‘जिस प्रकार जल जल में मिलने पर जल ही हो जाता है, उसी प्रकार ब्रह्मरूपी गणेश का चिन्तन करते हुए राजा वरेण्य भी उस ब्रह्मरूप में समा गये|"
२ सितंबर २०१९

Monday, 1 September 2025

जीवन का चरम लक्ष्य भगवत्-प्राप्ति ही है, अन्य कुछ भी नहीं ---

 जीवन का चरम लक्ष्य भगवत्-प्राप्ति ही है, अन्य कुछ भी नहीं ---

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अपने इस शरीर महाराज की बढ़ी हुई भौतिक आयु के अनुरूप इस जीवन की सम्पूर्ण चिंतन-धारा अब आध्यात्म की ओर उन्मुख हो गई है। इस शरीर महाराज का कोई भरोसा नहीं है, पता नहीं कब साथ छोड़ दें। लेकिन एक ऐसे शाश्वत अमर परम-तत्व का बोध इसी जीवन में हो गया है, जो इस शरीर महाराज के जन्म से पूर्व भी मेरे साथ था, और इसके विसर्जन के पश्चात भी मेरे साथ ही रहेगा। वह परम-तत्व मैं स्वयं हूँ।
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जीवन में धोखा तो मुझे मेरे अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, और अहंकार) से ही मिला। अन्य किसी का कोई दोष नहीं है। कोई कमी थी तो वह इस अन्तःकरण की ही थी। लेकिन वास्तव में इस अन्तःकरण का भी क्या दोष? यह भी विकास की क्रमिक अवस्था में अपरिपक्व और अप्रशिक्षित था।
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मेरी चेतना में द्वैत और अद्वैत के मध्य कोई अंतर नहीं है। द्वैत -- मार्ग है, तो अद्वैत -- परिणति है। बिना भक्ति के आध्यात्म में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। भक्ति का चरमोत्कर्ष द्वैत में ही होता है। आध्यात्म में मेरे परम आदर्श और आराध्य -- भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण हैं। श्रीमद्भगवद्गीता का भक्तियोग ही मेरे अनुकूल पड़ता है। अतः सारी प्रेरणा मुझे वहीं से मिलती है। कोई कुछ भी कहे अब कोई अंतर नहीं पड़ता। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बेशर्म तो होना ही पड़ता है। यदि आध्यात्म में सफल होना है तो सिर्फ अपने हृदय की ही सुनो, अन्य किसी की भी नहीं। इतना बेशर्म तो होना ही पड़ेगा। हृदय कभी धोखा नहीं देगा, अप्रशिक्षित अन्तःकरण सदा धोखा ही देगा।
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श्रीमद्भगवद्गीता और उपनिषदों में सारा मार्गदर्शन है, लेकिन उन्हें समझने के लिए किन्हीं श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य की भी आवश्यकता होती है जो हरिःकृपा से ही मिलते हैं। हरिःकृपा भी भक्ति और समर्पण से ही होती है। सभी को मंगलमय शुभ कामनाएँ और नमन !!
सदा याद रखें कि जीवन का परम लक्ष्य भगवत्-प्राप्ति ही है, अन्य कुछ भी नहीं।
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ॐ तत्सत् ! श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ! श्रीमते रामचंद्राय नमः !
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ नमः शिवाय !
कृपा शंकर
२ सितंबर २०२३