संतान कैसी होगी? इसका पूरा दायित्व माता पर है
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(१) जिस समय पुरुष का शुक्राणु और स्त्री का अंडाणु मिलते हैं, उस समय सूक्ष्म जगत में एक विस्फोट होता है, और माता के जैसे विचार और भाव होते हैं, वैसी ही जीवात्मा आकर गर्भस्थ हो जाती है। पिता की भूमिका इतनी ही होती है कि वह अपनी पत्नी में उच्च विचार जागृत करे। माता चाहे तो आध्यात्मिक साधना द्वारा महानतम दैवीय आत्माओं का आवाहन कर के उन्हें पुत्र रूप में पा सकती है।
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(२) गर्भवती स्त्री द्वारा ग्रहण किए जानेवाले आहार का गर्भ पर पूरा प्रभाव पड़ता है। हमारे विचार भी हमारे आहार ही होते हैं। अतः गर्भवती महिला को अपने भोजन और विचारों की सात्विकता पर पूरा ध्यान देना चाहिए।
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ॐ तत्सत् !!
१९ जून २०२२
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