Thursday, 19 June 2025

माता-पिता प्रथम देवता होते हैं। सर्वप्रथम प्रणाम उन्हीं को किया जाता है।

 माता-पिता प्रथम देवता होते हैं। सर्वप्रथम प्रणाम उन्हीं को किया जाता है। जिस मंत्र से गुरु को प्रणाम करते हैं, उसी मंत्र का मानसिक जप करते हुए पिता को प्रणाम किया जाता है। जिस मंत्र से भगवती भुवनेश्वरी को प्रणाम किया जाता है, उसी मंत्र का मानसिक जप करते हुए माता को प्रणाम किया जाता है। यदि वे नहीं हैं तो भी मानसिक रूप से सर्वप्रथम प्रणाम उन्हीं को करें।

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कई माँ-बाप अपने बच्चों को बहुत अधिक मारते-पीटते या प्रताड़ित करते हैं। कई माँ-बापों का आचरण बच्चों की दृष्टि में गलत होता है। ऐसे बच्चों में माँ-बाप के प्रति घृणा विकसित हो जाती है। वे अपने माँ-बाप को देखना भी पसंद नहीं करते। चाहे आप अपने माँ-बाप से घृणा करते हैं, या उनकी शक्ल देखना भी पसंद नहीं करते, फिर भी वे आपके प्रथम देवता हैं। प्रथम प्रणाम मानसिक रूप से उन्हीं को जाता है।
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नित्य सर्वप्रथम प्रणाम मानसिक रूप से जपते हुए "ॐ ऐं" मंत्र से अपने पिता को और फिर अपने गुरु को करें। फिर "ॐ ह्रीं" मंत्र से अपनी माता को और फिर भगवती को करें। माता-पिता चाहे कैसे भी हों, वे भगवान शिव और माँ अन्नपूर्णा के रूप हैं। आप उन्हें नहीं, उनके रूप में भगवान शिव और माँ अन्नपूर्णा को प्रणाम कर रहे हो। ये मंत्र चिन्मय और स्वयंसिद्ध हैं। शुद्ध मन से इनके जप में कोई दोष नहीं है। इससे पितृदोष दूर होते हैं, पित्तरों का और भगवान का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। माता-पिता यदि दूर हैं या दिवंगत हो गए हैं तो भी मानसिक रूप से उन्हें प्रणाम सर्वप्रथम करें।
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ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
२० जून २०२२

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