Tuesday, 3 June 2025

मैं आपको प्यार करता हूँ, आप को उसे स्वीकार करना ही पड़ेगा ---

 मैं आपको प्यार करता हूँ, आप को उसे स्वीकार करना ही पड़ेगा ---

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आप मेरा अस्तित्व हैं। आप ही यह मैं बने हुए हो, आपको सब पता है, फिर भी मैं स्वभाव-वश बार-बार यही कहता हूँ कि मैं आपको प्यार करता हूँ। आप स्वयं ही यह 'मैं' बन कर स्वयं को प्रेम कर रहे हो, और आप स्वयं ही गुरु रूप में स्वयं के यानि मेरे समक्ष हो। आप ही यह मैं बन कर इन पंक्तियों को लिख रहे हो। यह भेद ही आपकी लीला है। आपकी इन लीलाओं को मैं समझ गया हूँ। अब आप और छिप नहीं सकते।
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(१) जब भी आनंद की जरा सी भी अनुभूति हो, भगवान को पधारने के लिए धन्यवाद दो। भगवान इन आनंद की अनुभूतियों के रूप में ही आते हैं।
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(२) जीवन को मधुर और सरल बनाओ, व भगवान की उधार उतारने के लिए भगवान को अपना कीमती समय दो। यह समय उधार में उन्हीं से मिला हुआ है। भगवान की उपासना और स्मरण द्वारा हम भगवान की उधार ही उतार रहे होते हैं। जीवन में जो भी अनावश्यक है, उसे त्याग दो।
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(३) भगवान ने सदा साथ दिया है, वे हमें कभी भी छोड़ नहीं सकते। दुःख में, सुख में वे सदा हमारे साथ हैं। निज जीवन का हरेक क्षण उन्हीं को समर्पित है। वे ही यह 'मैं' बनाकर सारा कार्य कर रहे हैं। इन आँखों से वे ही देख रहे हैं, इन पैरों से वे ही चल रहे हैं। वे ही ये साँसें ले रहे हैं, वे ही सर्वस्व हैं। मेरा अस्तित्व -- भगवान का अस्तित्व है। मैं हूँ, यही उनकी उपस्थिती का सबसे बड़ा प्रमाण है। आपका गीता में दिया हुआ यह आदेश इस जीवन में चरितार्थ हो --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
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(४) हे प्रभु, आप शांत और सौम्य रूप में ही मेरे समक्ष रहो। अपनी इस उग्रता, क्रोध और अशांति का प्रदर्शन और कहीं जाकर करो। मेरे समक्ष तो बिलकुल भी नहीं। आपका वास्तविक स्वरूप ही मुझ में व्यक्त हो। यह उपासना भी आप ही कीजिये, चारों ओर छाए हुए असत्य का अंधकार भी आप ही दूर कीजिये। आप स्वयं ही सत्य हैं। जहां आप हैं, वहाँ कोई अंधकार हो ही नहीं सकता। आपका प्रकाश, आपकी ज्योति, और आपका अस्तित्व यह मैं ही हूँ।
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(५) और कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी है वह आप ही हो। आप ही सर्वस्व हो।
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥७:१९॥"
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और कहने को इस समय और कुछ भी नहीं है। बाद में जब भी आपकी इच्छा हो, मुझे माध्यम यानि एक निमित्त मात्र बनाकर स्वयं को व्यक्त करते रहना। यह मैं बन कर आप स्वयं अपनी ओर चलते रहो। मैं आपको प्यार करता हूँ, आपको उसे स्वीकार करना ही पड़ेगा।
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हरिः ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ जून २०२२

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