Wednesday, 9 April 2025

कूटस्थ में वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण अपना स्वयं का ध्यान कर रहे हैं ---

 कूटस्थ में वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण अपना स्वयं का ध्यान कर रहे हैं| वे अपने आसन पर पद्मासन में बैठे हैं| उनकी छवि अलौकिक व अवर्णनीय है| सारी सृष्टि उनमें, और वे सारी सृष्टि में समाहित हैं| उनका ज्योतिर्मय कूटस्थ विग्रह -- "शब्दब्रह्म", -- चारों ओर गूंज रहा है| अभय प्रदान करता हुआ हुआ उनका संदेश स्पष्ट है ---

"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि||१८:५८||
अर्थात् मच्चित्त होकर (मुझ में चित्त लगाकर) तुम मेरी कृपा से समस्त कठिनाइयों (सर्वदुर्गाणि) को पार कर जाओगे; और यदि अहंकारवश (इस उपदेश को) नहीं सुनोगे, तो नष्ट हो जाओगे||"
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हे परमशिव, आप मुझे बहुत दूर तक ले आए हो, अब तो कूटस्थ चैतन्य ही मेरा जीवन, और आप ही मेरे प्राण हो|| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० अप्रेल २०२१

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