Saturday, 29 March 2025

धर्मं-निरपेक्ष और धर्महीन व्यक्ति जीवन में कभी सुखी नहीं हो सकता ---

धर्मं-निरपेक्ष और धर्महीन व्यक्ति जीवन में कभी सुखी नहीं हो सकता। जीवन में सुख-शांति-सुरक्षा व संपन्नता का एकमात्र स्त्रोत परमात्मा है। मार्क्सवादी देशों का मुझे प्रत्यक्ष अनुभव है, वहाँ कोई सुख-शांति नहीं है। यही हाल इस्लामी व ईसाई देशों का है। भारत में लोग सुखी थे, क्योंकि वे संतुष्ट थे। अन्न की कोई कमी नहीं थी। उनके जीवन में आध्यात्म था। देश की सत्ता में शासक वर्ग ऐसा हो जिसे इस राष्ट्र की संस्कृति और अस्मिता से प्रेम हो। . हृदय के द्वार खुले हैं, और खुले ही रहेंगे। भगवान हर समय मेरे साथ एक हैं। वे एक क्षण के लिए भी मेरी दृष्टि से अब ओझल नहीं हो सकते। सारा वर्तमान उनको समर्पित है। भूत और भविष्य का विचार अब कभी जन्म नहीं ले सकता। कोई अंधकार नहीं, प्रकाश ही प्रकाश है। उनके सिवाय कोई भी अन्य नहीं है। केवल वे ही वे हैं। वे ही यह मैं बन गए हैं। .

भक्ति से क्या मिलता है ?
कुछ भी नहीं| जिसे कुछ चाहिए वह इस मार्ग में नहीं आये| उससे जो कुछ उसके पास है वह भी छीन लिया जाता है| यहाँ का नियम है कि जिसके पास कुछ है उसे और भी अधिक दिया जाता है, पर जिस के पास कुछ नहीं है उससे वह सब कुछ छीन लिया जाता है जो कुछ भी उसके पास है| भिखारी को कुछ नहीं मिलता लेकिन पुत्र को सब कुछ दे दिया जाता है|
. तुम भक्ति क्यों करते हो?
यह मेरा स्वभाव और जीवन है| मैं भक्ति के बिना जीवित नहीं रह सकता|
. भक्ति से तुमको क्या मिला?
भगवान का प्रेम| प्रेम के अतिरिक्त कुछ चाहिए भी नहीं था|
इस मार्ग में पाने को कुछ है ही नहीं| सब कुछ खोना ही खोना है| मिलेगा तो सिर्फ प्रेम ही| प्राण भी देना पड़ सकता है|
“कबीरा खड़ा बाजार में, लिए लुकाठी हाथ, जो घर फूंके आपनौ, चले हमारे साथ|" .
कृपा शंकर
३० मार्च २०१९

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