परमात्मा से अतिरिक्त अन्य कुछ भी सोचता हूँ तो बड़ी पीड़ा होती है
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मेरा स्वभाव अद्वैत-वेदान्त के अनुकूल है, इसलिए मेरी उपासना भी अद्वैत-वेदान्त के अनुसार है। इस मार्ग पर बहुत आगे बढ़ चुका हूँ, इसलिए अपने स्वभाव के विपरीत पीछे मुड़कर देखने का प्रश्न ही नहीं उठता। मैं ईश्वर के अवतारों में पूर्ण आस्था रखता हूँ, उनके प्रति समर्पण -- उनके साथ पूर्ण एकत्व की भावना है।
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बहुत कुछ लिख चुका हूँ, अब और कुछ भी लिखने की इस समय इच्छा नहीं है। इधर-उधर की फालतू बातें छोड़कर परमात्मा का ध्यान कीजिये। पूरा मार्गदर्शन उपनिषदों व गीता आदि ग्रन्थों में हैं। हर समय भगवान का चिंतन कीजिये, यही भगवान का आदेश है। अब और कहीं मन नहीं लगता। परमात्मा से अतिरिक्त अन्य कुछ भी सोचता हूँ तो बड़ी भयानक पीड़ा होती है। अन्य कुछ भी नहीं चाहिए।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ नवंबर २०२२
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