Wednesday, 13 November 2024

हमारा "अहंकार" हमारा शत्रु है या मित्र ? ---

 हमारा "अहंकार" हमारा शत्रु है या मित्र ? ---

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जो हम नहीं हैं, उसके होने का मिथ्या भाव अहंकार है| अहंकार -- हमारे अन्तःकरण का भाग है। अंतःकरण के चार भाग हैं -- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार।
(१) बिना क्रम के लहरों की तरह विचारों का आना "मन" है|
(२) विचारों का संगठित रूप "बुद्धि" है जो कुछ निर्णय लेने में समर्थ है जिन्हें शब्दों के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है|
(३) अव्यवस्थित मन और बुद्धि कुछ भी कल्पना या मानसिक रचना कर लेते हैं, वह "चित्त" है| यह हमारी चेतना का केंद्र बिन्दु है|
(४) जो हम नहीं हैं, उसके होने का मिथ्या भाव अहंकार है|
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अन्तःकरण की उत्पत्ति चंचल प्राण-तत्व से होती है। इस विषय पर और चर्चा न कर के मूल विषय पर आते हैं।
यदि हम स्वयं को यह शरीर मानते हैं तब तक अहंकार हमारा शत्रु है।
परमात्मा की अनुभूति के पश्चात अहंकार का बदला हुआ स्वरूप हमारा मित्र है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१३ नवंबर २०२४

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