संसार में असत्य का अन्धकार म्लेच्छों ने ही फैला रखा है। "म्लेच्छ" कौन है? ---
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जो लोग इंद्रीय वासनाओं की तृप्ति को ही जीवन का लक्ष्य मानते हैं, जिन्हें बुरे कामों से घृणा या लज्जा न हो, जो स्वभाव से ही हिंसक और दूसरों को कष्ट पहुँचाते हैं, ऐसे विवेकहीन व्यक्ति -- "म्लेच्छ" हैं।
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दानवों के गुरु शुक्राचार्य ने म्लेच्छों को परिभाषित किया है --
"त्यक्तस्वधर्माचरणा निर्घृणा: परपीडका:।
चण्डाश्चहिंसका नित्यं म्लेच्छास्ते ह्यविवेकिन:॥"
अर्थात् - जिन्होंने अपने धर्म का आचरण करना छोड़ दिया हो, जो निर्घृण (जिसे बुरे कामों से घृणा या लज्जा न हो) हैं, दूसरों को कष्ट पहुँचाते हैं, क्रोध करते हैं, नित्य हिंसा करते हैं, अविवेकी हैं - वे म्लेच्छ हैं।
२ जुलाई २०२१
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