भगवान हमारे जीवन में आ कर हमारे हृदय में स्थायी रूप से बिराजमान हो जायें, तो जीवन में सब सही होगा। किसी भी न्यायालय में जब तक न्यायाधीश आकर अपनी कुर्सी पर नहीं बैठता, तब तक सब कुछ अव्यवस्थित रहता है। ज्यों ही न्यायाधीश आकर अपनी कुर्सी पर बैठता है, सब कुछ व्यवस्थित हो जाता है।
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भगवान एक प्रवाह हैं, जिन्हें स्वयं के माध्यम से प्रवाहित होने दें। वे एक रस हैं, जिन्हें हम हर समय चखते रहें। हम जो खाते हैं, जो खा रहा है, जो साँस हम ले रहे हैं वह हर साँस, हृदय की हर धड़कन और सारा अस्तित्व भगवान है। उनसे पृथक कुछ भी अन्य नहीं है। उनसे सहायता मांगो, जो निश्चित रूप से मिलेगी। साक्षी भाव में निमित्त मात्र हो कर रहो। वे ही हमारी गति हैं। उनके बिना हमारा कुछ भी नहीं है। वे ही सर्वस्व हैं। भगवान को पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। हम पापी नहीं हैं। स्वयं को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है। हम परमात्मा के अमृतपुत्र हैं। ॐ तत्सत् । ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
४ जुलाई २०२१
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