सबसे बड़ी सेवा जो हम अपने स्वयं, परिवार, समाज, देश और विश्व की कर सकते हैं, और सबसे बड़ा उपहार जो हम किसी को दे सकते हैं, वह है -- आत्मसाक्षात्कार, यानि परमात्मा की प्राप्ति। निरंतर परमात्मा की चेतना में स्थिर रहें, यह बोध रखें कि हमारी आभा और स्पंदन पूरी सृष्टि और सभी प्राणियों की सामूहिक चेतना में व्याप्त हैं, और सब का कल्याण कर रहे हैं। परमात्मा की सर्वव्यापकता हमारी सर्वव्यापकता है, सभी प्राणियों और सृष्टि के साथ हम एक हैं। हमारा प्रेम पूरी समष्टि का कल्याण कर रहा है। हम और परमात्मा एक हैं।
.
स्वयं को यह भौतिक देह मानना ही अहंकार है। इस देह की वासनाओं का चिंतन ही हमारा पतन है जो हमें परमात्मा से दूर ले जाता है। धर्मशिक्षा के अभाव में हम धर्म के नाम पर मुर्ख बना दिए जाते हैं। अनेक झूठे उपदेश हम चुपचाप मानते रहे हैं। असत्य का प्रतिकार करें।
.
माता और पिता दोनों को अपने बच्चों के सामने एक-दूसरे की आलोचना या निंदा नहीं करनी चाहिए। इसका बहुत बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। अपने बच्चों की उपस्थिती में माँ-बाप जो भी करेंगे, बच्चे उसी को आदर्श मानेंगे। बच्चों की उपस्थिती में माता-पिता को भगवान की उपासना करनी चाहिए। भगवान जिस भी भावरूप में हमारे समक्ष आते हैं, हमारे हित के लिए ही आते हैं।
.
किसी भी तरह का दुराग्रह या पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए। कमजोरी के क्षणों में सदा सफल हनुमान जी ही याद आते हैं। वे तत्क्षण आ भी जाते हैं। और कोई आए या ना आए, वे वास्तव में संकट-मोचन हैं।
"अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानं ज्ञानिनामग्रगण्यं।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि॥"
.
वासनाओं से मुक्ति के लिए -- आहार शुद्धि, अभ्यास, वैराग्य, स्वाध्याय, सत्संग, व कुसंग त्याग आवश्यक है। दुष्ट व्यक्ति चाहे कितना भी बड़ा विद्वान या धनाढ्य हो, तब भी उसका संग नहीं करना चाहिये। कैसी भी परिस्थिति हो, कुसंग-त्याग आवश्यक है।
.
आप सब को नमन !! परमात्मा की आरोग्यकारी उपस्थिती आप सब की अंतर्रात्मा में प्रकट हो। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
०२ जुलाई २०२१
No comments:
Post a Comment