Sunday, 1 August 2021

आप ही जानने योग्य (वेदितव्यम्) परम अक्षर हैं ---

 आप ही जानने योग्य (वेदितव्यम्) परम अक्षर हैं ---

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गीता का निम्न श्लोक ठीक से समझने के पश्चात् अब बात ही दूसरी हो गई है। अब निश्चिंत होकर अपने लक्ष्य की ओर सब को आगे बढ़ना चाहिए।
अर्जुन कहते हैं --
"त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे॥११:१८॥"
अर्थात् -- आप ही जानने योग्य (वेदितव्यम्) परम अक्षर हैं; आप ही इस विश्व के परम आश्रय (निधान) हैं ! आप ही शाश्वत धर्म के रक्षक हैं और आप ही सनातन पुरुष हैं,ऐसा मेरा मत है॥
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आप ही मुमुक्षु पुरुषों द्वारा जानने योग्य परम अक्षर परम ब्रह्म परमात्मा हैं। आप ही इस समस्त जगत् के परम उत्तम निधान परम आश्रय हैं। आप अविनाशी हैं, और सनातन धर्म के रक्षक हैं। आप ही सनातन परम पुरुष हैं -- यह मेरा मत है।
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हे मेरे मन, उन दिव्य परम पुरुष को अब अपनी चेतना से एक क्षण के लिए भी ओझल मत होने दे, सब कुछ उन्हें सौंप कर निश्चिंत हो जा। इधर-उधर मत झांक, दृष्टि कूटस्थ में ही रख। अब और विचलित मत होना। जो कुछ भी तुम्हें परमात्मा से दूर करे, उसे उसी समय त्याग दे।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
०१ जुलाई २०२१

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