Wednesday, 28 July 2021

मन में बहुत अधिक भावों का आना भी एक भटकाव है ---

 

🌹🙏🌹 मन में बहुत अधिक भावों का आना भी एक भटकाव है। उन्हें व्यक्त करने में आनंद नहीं है। स्वयं की पृथकता के बोध के साथ-साथ उन्हें भी बापस उनके मूल स्त्रोत -- परमात्मा को समर्पित करने में ही आनंद है। प्रेम -- प्रियतम परमात्मा से है, न कि उनकी बाह्य अभिव्यक्तियों से। सब कुछ बापस परमात्मा को समर्पित है। सब कुछ उन्हीं का है, और वे ही सब कुछ है।
🌹🙏🌹 तेलधारा की तरह वे निरंतर अंतर्चेतना में प्रवाहित हो रहे हैं। उन में ही जो लय हो जाये, वही सार्थक है, अन्य सब भटकाव है।
🌹🙏🌹 हे प्रभु, मुझे सब प्रकार के राग-द्वेष और आसक्तियों से मुक्त करो, कोई किन्तु-परन्तु न हो। अन्तःकरण मुझ पर हावी हो रहा है, मैं अंतःकरण पर विजयी बनूँ। अप्राप्त को प्राप्त करने की कोई स्पृहा न रहे। इस भौतिक देह और इस के भोग्य पदार्थों के प्रति कोई तृष्णा न रहे। कोई कर्ता भाव न रहे। आपका सच्चिदान्द स्वरूप ही मैं हूँ, इससे कम कुछ भी नहीं। अस्तित्व सिर्फ आपका ही है, मेरा नहीं। मेरा आत्मस्वरूप आप ही हैं। आप ही कर्ता और भोक्ता हैं, आप की जय हो। ॐ तत्सत् !! 🔥🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹🔥
१७ जून २०२१

No comments:

Post a Comment