हठयोग की परंपरा कितनी प्राचीन है, इसका मुझे कोई ज्ञान नहीं है। किसी को पता है तो मुझे बताने की कृपा करें। वर्तमान में जो हठयोग प्रचलित है, वह मुख्यतः नाथ संप्रदाय की देन है, जिसका श्रेय नाथ संप्रदाय को ही मिलना चाहिए।
यदि पातंजलि के नाम से कोई इसका प्रचार करता है तो वह असत्य का प्रचार कर रहा है। पातंजलि ने अपने "योग दर्शन" में हठयोग को कहीं पर भी नहीं सिखाया है। आसन और प्राणायाम के बारे में उन्होने इतना ही लिखा है ---
"स्थिरसुखमासनम्॥४६॥"
"प्रयत्नशैथिल्यानन्तसमापत्तिभ्याम्॥४७॥"
"ततो द्वन्द्वानभिघातः॥४८॥"
"तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः॥४९॥"
"वाह्याभ्यन्तरस्तम्भवृत्तिः देशकालसङ्ख्याभिः परिदृष्टो दीर्घसूक्ष्मः॥५०॥"
"वाह्याभ्यन्तरविषयाक्षेपी चतुर्थः॥५१॥"
"ततः क्षीयते प्रकाशावरणम्॥५२॥"
"धारणासु च योग्यता मनसः॥५३॥"
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वर्तमान हठयोग के तीन मुख्य ग्रंथ हैं -- (१) शिव संहिता, (२) हठयोग प्रदीपिका, (३) घेरण्ड संहिता।
शिव-संहिता और हठयोग-प्रदीपिका -- नाथ संप्रदाय के ग्रंथ हैं। शिव-संहिता के रचयिता गुरु मत्स्येंद्रनाथ को माना जाता है, जो गोरखनाथ के गुरु थे। हठयोगप्रदीपिका के रचयिता गुरु गोरखनाथ के शिष्य स्वात्मारामनाथ को माना जाता है।
घेरंड-संहिता के रचयिता घेरंड मुनि हैं| यह ज्ञान उन्होने अपने शिष्य चंड कपाली को दिया था|
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मुंगेर (बिहार) स्थित 'बिहार स्कूल ऑफ योग" के आचार्य परमहंस निरंजनानन्द सरस्वती जी ने हठयोग पर अनेक प्रामाणिक पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें "घेरण्ड संहिता" का भाष्य भी है। उनके सन्यासी व अन्य शिष्य हठयोग का प्रामाणिक ज्ञान पूरे विश्व में दे रहे हैं। घेरण्ड संहिता में सात अध्याय हैं जो निम्न विषयों पर प्रकाश डालते हैं -- षट्कर्म, आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यान, और समाधि।
"शिव-संहिता" -- योग-साधना का एक अनुपम ग्रंथ है जिसका स्वाध्याय सभी योग साधकों को एक बार तो अवश्य करना चाहिए। शिव-संहिता में ही महामुद्रा की विधि दी हुई है जिसके नियमित अभ्यास के कभी भी कमर नहीं झुकती। महामुद्रा -- क्रियायोग साधना का एक अभिन्न भाग है।
ॐ तत्सत् ॥
१६ जून २०२१
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