"राम" नाम कब और कैसे सुनाई देता है? :---
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जब भी ध्यान भ्रूमध्य पर जाता है, और प्राण वहाँ अटक जाते हैं, तब सिर्फ तारक मंत्र "राम" ही सुनाई देता है, और कुछ भी नहीं। "राम" और "ॐ" में कोई अंतर नहीं है, दोनों एक ही हैं। सहस्त्रार में ब्रह्मरंध्र पर तो और भी स्पष्ट और दीर्घ रूप से यह सुनाई देता है। "ॐ" सुनें या "राम" -- बात एक ही है।
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किसी ने मुझसे पूछा है कि फेसबुक पर राम नाम का क्या काम ? उस भले आदमी को बताना चाहता हूँ कि काम ही राम नाम का है, और कुछ है ही नहीं। राम नाम जिन्हें पसंद नहीं है, वे मुझे ब्लॉक कर दें, और मुझ से दूर चले जाएँ, अन्यथा अनायास ही उनका बहुत बड़ा अनर्थ हो सकता है। राम जी ही मुझसे लिखवाते हैं, और वे उसे पढ़ते भी हैं। कहीं लिखने में भूल रह जाये तो वे उसे शुद्ध भी करवा देते हैं। यह मेरी आस्था, श्रद्धा और विश्वास है।
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राम नाम की उत्पत्ति :-- जब मैं साँस लेता हूँ, तब प्राणतत्व की घनीभूत ऊर्जा मूलाधारचक्र से ऊपर उठकर सभी चक्रों को पार करती हुई सहस्त्रारचक्र तक स्वाभाविक रूप से जाती है, और जब साँस छोड़ता हूँ तब यही प्राणऊर्जा सहस्त्रारचक्र से बापस नीचे सभी चक्रों को ऊर्जा प्रदान करती हुई लौटती है| ऊपर जाते समय मणिपुरचक्र को जब यह आहत करती है तब वहाँ एक बड़ा शब्द - "रं" - जुड़ जाता है। आज्ञाचक्र में वहाँ से निरंतर निःसृत होती हुई प्रणव की ध्वनि "ॐ" जब उसमें जुड़ जाती है, तब "रं" और "ॐ" दोनों मिलकर "राम्" हो जाते हैं, और आज्ञाचक्र के ठीक सामने भ्रूमध्य में स्पष्ट सुनाई देते हैं। एक दिन में ये नहीं सुनाई देंगे। कम से कम छः महीने या अधिक, नित्य कम से कम दो घंटे से अधिक, भ्रूमध्य में पूर्ण श्रद्धा-विश्वास और सत्यनिष्ठा से "राम" नाम का मानसिक जप कीजिये। बाद में यह आपका स्वभाव हो जाएगा, और स्वाभाविक रूप से राम नाम सुनाई देने लगेगा। फिर जीवन भर नित्य कम से कम दो घंटे या अधिक समय तक इसका मानसिक जप करना चाहिए। मुझे कोई प्रयास नहीं करना पड़ता। ध्यानस्थ होते ही यह नाद स्वाभाविक रूप से निरंतर सुनाई देने लगता है।
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भ्रूमध्य राम जी का द्वार है। मृत्यु के समय भगवान शिव अपने भक्तों को तारक मंत्र "राम्" की दीक्षा देते हैं। भ्रूमध्य में प्राण एवं मन को स्थापित करके जो उस परम पुरुष का दर्शन करते-करते देह त्याग देते हैं , उनका पुनर्जन्म नहीं होता। यह भगवान श्रीकृष्ण का वचन है --
(यदि आप संसार सागर को पार कर मोक्ष चाहते हैं तो गीता के निम्न १० श्लोकों का गहनतम स्वाध्याय व अनुसरण स्वयं करें)
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
"अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना।
परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन्॥८:८॥"
"कविं पुराणमनुशासितार मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप मादित्यवर्णं तमसः परस्तात्॥८:९॥"
"प्रयाणकाले मनसाऽचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव।
भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम्॥८:१०॥"
"यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः।
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये॥८:११॥"
"सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च।
मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम्॥८:१२॥"
"ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्॥८:१३॥"
"अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः॥८:१४॥"
"मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम्।
नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः॥८१५॥"
"आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते॥८:१६॥"
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यह एक अत्यन्त वास्तविक और सच्ची साधना है सिर्फ बात ही नहीं है। जो जीवनभर अभ्यास करते हैं, उनकी कुंडलिनी महाशक्ति पूरी तरह जागृत हो जाती है। जीवन में हरिःकृपा से गुरु लाभ भी प्राप्त होगा। आवश्यकता -- परमप्रेम, सत्यनिष्ठा, श्रद्धा, और विश्वास की है। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ जून २०२१
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