देश के शासक को समझौतावादी दृष्टिकोण छोड़ना ही होगा। देश के बहुसंख्यकों की हत्या पर मौन होकर देखते रहना केंद्र शासन का पाप है। मोदी सरकार दण्डनीति का प्रयोग करे। पता नहीं केंद्र सरकार भयभीत क्यों है।
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वेदान्त दर्शन -- साधु-सन्यासियों, विरक्तों व आध्यात्मिक-साधकों के लिए है, न कि देश के शासक के लिए। राजा जनक का युग दूसरा था। यदि देश का शासक, -- आततायियों व अधर्मियों में भी परमात्मा को देखना, उनके साथ प्यार-मोहब्बत करना, व उनके साथ और विश्वास को जीतने का प्रयास करते हैं, तो यह अधर्म की वृद्धि करने वाला आत्म-घातक कार्य है। ऐसे शासक को राजनीति छोड़कर सन्यासी बन जाना चाहिए। अधर्मियों व आततायियों से प्यार, धर्मद्रोह है जो धर्म से च्युत कर के धर्म का नाश करने वाला है।
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सनातन धर्म में शासक के लिए राजनीति क्या व कैसी हो, इसे विभिन्न ग्रन्थों में स्पष्ट बताया गया है। आततायियों व अधर्मियों को यथोचित दंड देना राज्य का कर्तव्य व दायीत्व है। भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण हमारे आदर्श हैं। महाभारत के युद्ध में अर्जुन तो सब कुछ छोड़कर सन्यासी बन जाना चाहता था, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उसे उसके धर्म-मार्ग यानि दुष्टों के संहार हेतु युद्ध में प्रवृत्त किया। जो शासक अधर्मियों का भी साथ और विश्वास जीतने का कार्य करेगा, वह कभी भी सत्यनिष्ठों व धर्मनिष्ठों का साथ व विश्वास जीतने की चिंता नहीं करेगा।
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अतः सज्जनों की रक्षा के लिए दुष्टों का नाश --- राजा का राजधर्म है, जिससे च्युत उसे नहीं होना चाहिए। ॐ स्वस्ति !!
१२ जून २०२१
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