आध्यात्म में या धार्मिक क्षेत्र में, कोई बात समझ में नहीं आये, या जिसे समझना हमारी बौद्धिक क्षमता से परे हो, तो उसको वहीं छोड़ देना चाहिए। जितना और जो भी समझ में आ सके, वही ठीक, सर्वोचित और पर्याप्त है। हमें बोलना भी वही चाहिए जो सामने वाले के समझ में आ जाये। यह उपदेश मुझे देहरादून में स्वामी ज्ञानानन्द गिरि महाराज ने दिया था।
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देहरादून में कोलागढ़ रोड़ पर एक बहुत बड़े सिद्ध महात्मा स्वामी ज्ञानानन्द गिरि रहा करते थे, जिनका सत्संग लाभ मुझे तीन बार मिला है। अब तो वे ब्रह्मलीन हो गए हैं। मैंने उनसे एक बार निवेदन किया कि मुझे आध्यात्म की बहुत सारी बातें समझ में नहीं आती हैं, बौद्धिक क्षमता का अभाव है। उन्होने उत्तर दिया कि "भगवान है" बस इतना ही समझ लेना पर्याप्त है, बाकी जो आवश्यक होगा वह भगवान स्वयं समझा देंगे।
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वे स्वामी आत्मानंद गिरि के शिष्य थे। स्वामी आत्मानंद गिरी (पूर्वाश्रम का नाम डॉ. प्रकाशदास) -- योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के स्थापना काल से बीस वर्ष तक जनरल सेक्रेटरी थे।
परमहंस योगानन्द जी ने अपने जीवन काल में दो ही मुमुक्षुओं -- राजर्षि जनकानन्द और स्वामी आत्मानंद गिरी को ही सन्यास की दीक्षा दी थी।
परमहंस योगानन्द जी के ब्रह्मलीन हो जाने के बाद में श्री श्री दयामाता, स्वामी श्यामानंद गिरी, और स्वामी विद्यानंद गिरी आदि ने पुरी के शंकराचार्य स्वामी भारतीकृष्ण तीर्थ से सन्यास लिया था। ॐ तत्सत् !!
७ जून २०२१
जैसे सारी नदियाँ महासागर में गिरती हैं, वैसे ही हमारे सारे विचार भगवान तक पहुँचते हैं। हमारा हर विचार हमारा कर्म है, जिसका फल मिले बिना नहीं रहता।
ReplyDeleteभगवान् से प्रेम करेंगे तो उनकी सृष्टि भी हमसे प्रेम करेगी। जैसा हम सोचेंगे, वैसा ही वही कई गुणा बढ़कर हमें मिलेगा।
सब में सब के प्रति प्रेमभाव हो, यही मेरी प्रार्थना भगवान से है। ॐ ॐ ॐ !!