Wednesday, 23 June 2021

अहंकार व ब्रह्मभाव में क्या अंतर है?

 अहंकार व ब्रह्मभाव में क्या अंतर है?

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स्वयं को यह देह, मन, और बुद्धि समझ लेना अहंकार है| शरीर के धर्म हैं ..... भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी आदि| मन का धर्म है राग-द्वेष, मद यानि घमंड आदि| चित्त का धर्म है वासनाएँ| प्राणों का धर्म है शक्ति और बल| इन सब को अपना समझना अहंकार है|
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ब्रह्मभाव एक अनुभूति का विषय है जिसे सिर्फ सात्विक बुद्धि से ही समझा जा सकता है| परमात्मा सर्वव्यापक हैं| उनकी सर्वव्यापकता के साथ एक होने का बोध ..... ब्रह्मभाव है| यह अनुभूति गहन ध्यान में सभी साधकों को होती है|
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आत्मा का धर्म है ... परमात्मा के प्रति अभीप्सा और परम प्रेम (भक्ति)| यही हमारा सही धर्म है| जब परमात्मा के प्रति भक्ति जागृत होती है, तब अभीप्सा का जन्म होता है| यहीं से आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ होता है| भगवान तब गुरु रूप में मार्गदर्शन भी करते हैं, और अनुभूतियों के द्वारा हमें प्रोत्साहित भी करते हैं| उन अनुभूतियों के पश्चात ही हम ..... शिवोंहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि ..... कह सकते हैं| यह कोई अहंकार की यात्रा (Ego trip) नहीं बल्कि हमारा वास्तविक अंतर्भाव होता है| अहं ब्रह्मास्मि यानि मैं ब्रह्म हूँ यह कहना अहंकार नहीं है| ॐ तत्सत् ||
कृपा शंकर
२३ जून २०२०

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