भगवान को पाने का एकमात्र मार्ग "भक्ति" है ---
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गीता में भगवान कहते हैं ...
"भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः| ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्||१८:५५||"
अर्थात् (उस परा) भक्ति के द्वारा मुझे वह तत्त्वत: जानता है कि मैं कितना (व्यापक) हूँ तथा मैं क्या हूँ| (इस प्रकार) तत्त्वत: जानने के पश्चात् तत्काल ही वह मुझमें प्रवेश कर जाता है, अर्थात् मत्स्वरूप बन जाता है||
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आचार्य शंकर व स्वनामधन्य अन्य अनेक आचार्यों ने उपरोक्त श्लोक पर बड़ी बड़ी टीकायें की हैं| गीता में कर्म, भक्ति व ज्ञान ... इन तीनों विषयों को बहुत अच्छी तरह समझाया गया है| मैं उन सभी आचार्यों की वंदना करता हूँ जिन्होनें गीता का संदेश जनमानस को समझाया|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
२४ जून २०२०
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