एक सत्य जो प्रत्यक्ष और व्यवहारिक रूप से मुझे बहुत देरी से समझ में आया, अब तो वह स्पष्ट हो गया है कि .....
हमें जो कुछ भी जीवन में मिलता है, (चाहे वह परमात्मा की कृपा ही क्यों न हो) ..... स्वयं की "श्रद्धा और विश्वास" से ही मिलता है, न कि किसी अन्य माध्यम से| श्रद्धा और विश्वास हो तो तभी हमारे पर भगवान की कृपा होती है| बाकी अन्य सब जैसे पीर-फकीर, कब्र-मकबरे, व महात्माओं के आशीर्वाद ... बहाने मात्र हैं| उनसे कुछ नहीं मिलता| श्रद्धा, विश्वास और समर्पण ... हमारी पात्रता के मापदंड हैं|
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रामचरितमानस के मंगलाचरण में ही लिखा है ...
"भवानी शङ्करौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ| याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्||"
जिस श्रद्धा एवं विश्वास के बिना सिद्ध पुरुष भी अपने हृदय में स्थित ईश्वर के दर्शन नही कर पाते उन श्रद्धा रूपी पार्वती जी तथा विश्वास रूपी शंकर जी को प्रणाम करता हूँ|
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गीता में भगवान कहते हैं ....
"श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः| ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति||४:३९||"
अर्थात श्रद्धावान्, तत्पर और जितेन्द्रिय पुरुष ज्ञान प्राप्त करता है| ज्ञान को प्राप्त करके शीघ्र ही वह परम शान्ति को प्राप्त होता है||
ॐ तत्सत् ||
कृपा शंकर
२४ जून २०२०
जो कुछ भी जीवन में हमें मिलता है, वह अपनी श्रद्धा और विश्वास से ही मिलता है। बिना श्रद्धा-विश्वास के कुछ भी नहीं मिलता।
ReplyDelete"श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।४:३९॥" (गीता)
"भवानी-शंकरौ वन्दे श्रद्धा-विश्वास रूपिणौ ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्त:स्थमीश्वरम् ॥" (रामचरितमानस)