समय का सबसे बढ़िया उपयोग क्या हो सकता है? ---
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कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है| मन में हर समय निरर्थक विचार आते रहते हैं, यह अवसाद-ग्रस्तता का मुख्य कारण है| इस मामले में मैंने देखा है कि जो लोग आस्तिक और भक्त हैं उन्हें यह टाइम-पास वाली समस्या नहीं है, वे स्वयं को अपने मानसिक जप से इतना अधिक व्यस्त रखते हैं कि उनके मन में कोई फालतू विचार ही नहीं आता| मुझे जीवन में कुछ ऐसे भक्त भी मिले हैं जो अपने इष्ट देवी/देवता के बीज-मंत्र की जब तक एक-सौ मालायें नहीं फेर लेते तब तक स्वयं को कोई भोजन नहीं देते| कुछ संप्रदायों में उनके बहुत लंबे गुरु-मंत्र की सौलह मालायें एक दिन में फेरना अनिवार्य हैं| अतः वे दिन-रात इसी में लगे ही रहते हैं|
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जो सत्यनिष्ठ भक्त होते हैं वे तो अपने मन को कभी खाली रहने नहीं देते, हर समय अपने इष्ट देवी/देवता के मंत्र का मानसिक जप करते ही रहते हैं| सोते-जागते हर समय मानसिक रूप से उनके अपने गुरुमंत्र का जाप चलता ही रहता है| ऐसे लोग कभी अवसाद-ग्रस्त नहीं होते और आत्म-हत्या जैसा घटिया विचार तो उनके दिमाग में आता ही नहीं है| भगवान का भक्त कभी आत्म-हत्या नहीं करता| कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपनी आस्था से सारे दुःख-कष्ट-पीड़ाएँ सहन कर लेता है|
"यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः| यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते||६:२२||"
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भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं को यज्ञों में जप-यज्ञ बताया है| अतः हर समय निरंतर सांसारिक काम के साथ-साथ यह जप-यज्ञ चलता रहे| इस से मन को बड़ा आनंद मिलेगा| कहा जाता है कि जप यज्ञ अत्यन्त कठिन एवं गुरूमुखगम्य है| पर श्रद्धा और विश्वास हो तो हम निष्काम भाव से मंत्र जप कर सकते हैं| भगवान श्रीकृष्ण से बड़ा कोई अन्य गुरु नहीं है| अतः सिर्फ उन की ही सुनेंगे|
"महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्| यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः||१०:२५||"
अर्थात् -- महर्षियोंमें भृगु और वाणियों-(शब्दों-) में एक अक्षर अर्थात् प्रणव मैं हूँ| सम्पूर्ण यज्ञोंमें जपयज्ञ और स्थिर रहनेवालोंमें हिमालय मैं हूँ|
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सभी को शुभ कामनायें और नमन !! हरिः ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२२ जून २०२०
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