इस जन्म में ही नहीं, सभी जन्मों में मैं अब तक जितने भी लोगों से मिला हूँ, साक्षात् कूटस्थ परमशिव पारब्रह्म परमात्मा से ही मिला हूँ| अब तक जहाँ कहीं भी गया हूँ, मैनें परमात्मा में ही विचरण किया है| अन्य कोई या कुछ भी है ही नहीं| परमात्मा ही यह "मैं" बन जाता है| पृथकता का बोध एक भ्रम मात्र है| मेरा एकमात्र संबंध, और नित्य का लोक-व्यवहार भी परमात्मा से ही है| जहाँ भी मैं हूँ, वहीं परमात्मा हैं| वे मुझ से पृथक नहीं हो सकते| वे मेरे शाश्वत साथी हैं| इस जन्म से पूर्व भी वे ही मेरे साथ थे, और इस जन्म की मृत्यु के पश्चात भी वे ही मेरे साथ रहेंगे| सभी जन्मों में वे ही माता-पिता, भाई-बहिन और सभी संबंधियों, मित्रों व शत्रु के रूप में आये| इस भौतिक हृदय में वे ही धड़क रहे हैं, इन आँखों से वे ही देख रहे हैं, इन पैरों से वे ही चल रहे हैं, और इन नासिकाओं से वे ही सांसें ले रहे हैं| सारी दृष्टि, दृश्य और दृष्टा वे ही हैं| मेरा अस्तित्व 'कूटस्थ चैतन्य' है जिसका केंद्र सर्वत्र है, परिधि कहीं भी नहीं|
.
ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमः शिवाय !! ॐ ॐ ॐ !!!
कृपा शंकर
१९ फरवरी २०२०
.
ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमः शिवाय !! ॐ ॐ ॐ !!!
कृपा शंकर
१९ फरवरी २०२०
No comments:
Post a Comment