Saturday, 7 March 2020

मुक्ति की सोचें, बंधनों की नहीं .....

मुक्ति की सोचें, बंधनों की नहीं, जो हमें मृत्यु देना चाहते हैं, उन्हें मृत्यु देना भी हमारा धर्म है ...
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इस जीवन में इस पृथ्वी पर, और इस जीवन के पश्चात् एक काल्पनिक स्वर्ग में मौज-मस्ती-मजा लेने की कामना/अपेक्षा ..... घोर निराशाजनक, असत्य, महादुखदायी और धोखा होगी| ऐसी कामनाएँ और अपेक्षाएँ महाबंधनकारी, झूठी और अंधकारमय नर्क में धकेलने वाली होती हैं| इस खतरे से सावधान! अपनी इन्द्रियों को और मन को वश में रखें| मुक्ति की सोचें, बंधनों की नहीं| हमारा कार्य परमात्मा के प्रकाश की वृद्धि करना है, न कि अंधकार की| अन्धकार की वृद्धि करेंगे तो अज्ञान व दुःख ही प्राप्त होगा| पूर्व जन्मों में कुछ पुण्य किये होंगे इसीलिये भगवान हमें सदा अपने हृदय में रखते हैं| कुछ पाप भी किये होंगे जिनका दंड भी मिलता है| हमारे हृदय में परमात्मा की चेतना निरंतर बनी रहे| हृदय में परमात्मा होंगे तो सभी कार्य अच्छे ही होंगे|
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वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में गीता में भगवान् ने दुराचारी आसुरी गुणों वाले व्यक्तियों के लक्षण बताये हैं जिन से सदा दूरी रखना ही ठीक है .....
"प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः| न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते||१६:७||"
"असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्| अपरस्परसंभूतं किमन्यत्कामहैतुकम्||१६:८||"
"एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः| प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः||१६:९||"
"काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः|मोहाद्‌गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः||१६:१०||"
"चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः| कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिताः||१६:११||"
"आशापाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः| ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्||१६:१२||"
"अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः| मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः||१६:१८||"
"तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्| क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु||१६:१९||"
"तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्| क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु||१६:२०||"
"त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः| कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्||१६:२१||"
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जिन लोगों के साथ हम रहते हैं, उन के गुण हमारे में आये बिना नहीं रहते| अतः दुष्ट असुर/राक्षस प्रकृति के लोगों को दूर से ही नमन कर देना अच्छा है| साथ ही रहना है तो सदाचारी लोगों के साथ रहो, अन्यथा अकेले रहना ही ठीक है|
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जो दूसरों को अपना मत मानने को बलात् बाध्य करते हैं वे ही असुर राक्षस हैं| आतताई से आत्म-रक्षा करना हमारा अधिकार ही नहीं कर्त्तव्य भी है| आतताई .... यानि जो क्रूर हिंसक दुष्ट प्रवृत्ति का व्यक्ति जिसका दमन कठिन हो, जो हमारे प्राण लेने, हमारी स्त्री, संतानों आदि का अपहरण करने, हमारी संपत्ति को लूटने व जलाने के लिए आ रहा हो, उसके लिए हमारे शास्त्रों में क्षमा का कोई प्रावधान नहीं है| उसके लिए मृत्यु दंड ही निर्धारित है| जो हमें मृत्यु देना चाहते हैं, उन्हें मृत्यु देना कोई पाप नहीं है|
भारत के भीतर व बाहर के शत्रुओं का, असत्य और अंधकार की शक्तियों का नाश हो| धर्म की जय हो|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२१ फरवरी २०२०

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