मेरु शीर्ष ......
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मेरुशीर्ष (Medulla Oblongata) मानव देह का सर्वाधिक संवेदनशील भाग है| मेरुदंड की समस्त शिराएँ यहाँ मस्तिष्क से जुड़ती हैं| पूरी देह का नियन्त्रण यहीं से होता है| इस स्थान की कोई शल्य क्रिया नहीं हो सकती| यहीं पर सूक्ष्म देहस्थ आज्ञा चक्र है|
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यह स्थान भ्रूमध्य की सीध में खोपड़ी में ठीक पीछे कि ओर होता है| जीवात्मा का निवास यहीं पर होता है| योगियों को यहीं पर सर्वव्यापी नादब्रह्म का श्रवण व सर्वव्यापी ज्योति के दर्शन होते हैं, जिसके लिए भ्रूमध्य में गुरु की आज्ञा से ध्यान करते हैं| मनुष्य की चेतना यहीं से नियंत्रित होकर ऊर्ध्वमुखी होती है| ब्रह्मांड कि ऊर्जा भी यहीं से प्रवेश कर के देह को जीवंत रखती है| इसी के ठीक थोडा सा ऊपर वह बिंदु है जहाँ हिन्दू शिखा रखते हैं| मनुष्य जीवन के सारे रहस्य यहीं छिपे हुए हैं|
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क्रियायोग साधना में योगी अपने गुरु की आज्ञानुसार गुरु प्रदत्त विधि से अपनी प्राण ऊर्जा को मानसिक रूप से सुषुम्ना पथ में मूलाधार चक्र से उठाकर स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि व आज्ञा .... चक्रों को भेदता हुआ ऊपर-नीचे गमन करता है|
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आज्ञा चक्र के जागृत होने पर कोई रहस्य, रहस्य नहीं रहता|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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मेरुशीर्ष (Medulla Oblongata) मानव देह का सर्वाधिक संवेदनशील भाग है| मेरुदंड की समस्त शिराएँ यहाँ मस्तिष्क से जुड़ती हैं| पूरी देह का नियन्त्रण यहीं से होता है| इस स्थान की कोई शल्य क्रिया नहीं हो सकती| यहीं पर सूक्ष्म देहस्थ आज्ञा चक्र है|
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यह स्थान भ्रूमध्य की सीध में खोपड़ी में ठीक पीछे कि ओर होता है| जीवात्मा का निवास यहीं पर होता है| योगियों को यहीं पर सर्वव्यापी नादब्रह्म का श्रवण व सर्वव्यापी ज्योति के दर्शन होते हैं, जिसके लिए भ्रूमध्य में गुरु की आज्ञा से ध्यान करते हैं| मनुष्य की चेतना यहीं से नियंत्रित होकर ऊर्ध्वमुखी होती है| ब्रह्मांड कि ऊर्जा भी यहीं से प्रवेश कर के देह को जीवंत रखती है| इसी के ठीक थोडा सा ऊपर वह बिंदु है जहाँ हिन्दू शिखा रखते हैं| मनुष्य जीवन के सारे रहस्य यहीं छिपे हुए हैं|
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क्रियायोग साधना में योगी अपने गुरु की आज्ञानुसार गुरु प्रदत्त विधि से अपनी प्राण ऊर्जा को मानसिक रूप से सुषुम्ना पथ में मूलाधार चक्र से उठाकर स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि व आज्ञा .... चक्रों को भेदता हुआ ऊपर-नीचे गमन करता है|
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आज्ञा चक्र के जागृत होने पर कोई रहस्य, रहस्य नहीं रहता|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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