Sunday, 12 November 2017

जीवन का यह संध्याकाल है, पता नहीं कब हरी झंडी मिल जाए .....

जीवन के इस संध्याकाल में अब कहीं भी जाने की या चला कर किसी से भी मिलने की कोई कामना नहीं रही है | भगवान अपनी इच्छा से कहीं भी ले जाए या किसी से भी मिला दे, उसकी मर्जी, पर मेरी स्वयं की कोई इच्छा नहीं है | जीवन से पूर्ण संतुष्टि और ह्रदय में पूर्ण तृप्ति है, कोई असंतोष नहीं है |
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जहां तक आध्यात्म का सम्बन्ध है, कण मात्र भी कोई संदेह या शंका नहीं है| इस अति अल्प और अति सीमित बुद्धि में समा सकने योग्य गहन से गहन आध्यात्मिक रहस्य भी रहस्य नहीं रहे हैं| सब कुछ स्पष्ट है| परमात्मा की पूर्ण कृपा है| कहीं कोई कमी नहीं है| भगवान ने मुझे अपना निमित्त बनाया यह उनकी पूर्ण कृपा है| सारी साधना वे ही कर रहे हैं, साक्षी भी वे ही हैं, साध्य साधक और साधना भी वे ही हैं| मुझे करने योग्य कुछ भी नहीं है, सब कुछ वे ही कर रहे हैं|
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आप सब महान आत्माओं को नमन !
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

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