अपनी आध्यात्मिक साधना के पथ पर हम निरंतर अग्रसर रहें ......
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इस संसार में हमारे बारे में कोई क्या सोचता है और कौन क्या कहता है, इसकी परवाह न करते हुए निरंतर हम अपने पथ पर अग्रसर रहें, चलते रहें, चलते रहें, चलते रहें, चलते रहें, और कहीं पर भी न रुकें | अपनी विफलताओं व सफलताओं की ओर भी न देखें, वे एक अवसर के रूप में आई थीं, कुछ सिखाने के लिए, और कुछ भी उनका महत्त्व नहीं था | महत्व इस बात का भी नहीं है कि अपने साथ क्या हो रहा है, महत्व सिर्फ इस बात का है कि ये अनुभव हमें क्या सिखा रहे हैं और क्या बना रहे हैं | हर परिस्थिति कुछ ना कुछ सीखने का एक अवसर है | कौन क्या सोचता है या कहता है, यह उसकी समस्या है, हमारी नहीं | हमारा कार्य सिर्फ चलते रहना है क्योंकि ठहराव मृत्यु और चलते रहना ही जीवन है | इस यात्रा में वाहन यह देह पुरानी और जर्जर हो जायेगी तो दूसरी देह मिल जायेगी, पर अपनी यात्रा को मत रोकें, चलते रहें, चलते रहें, चलते रहें, तब तक चलते रहें, जब तक अपने लक्ष्य को न पा लें |
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अंशुमाली मार्तंड कमलिनीकुलवल्लभ भुवनभास्कर भगवान आदित्य जब चमकती हुई अपनी दिव्य आभा और प्रकाश के साथ अपने पथ पर अग्रसर होते हैं, तब मार्ग में कहीं भी किंचित भी तिमिर का कोई अवशेष उन्हें नहीं मिलता | उन्हें क्या इस बात की चिंता होती है कि मार्ग में क्या घटित हो रहा है ? निरंतर अग्रसर वे भगवान भुवन भास्कर आदित्य ही इस साधना पथ पर हमारे परम आदर्श हैं जो सदा प्रकाशमान और गतिशील हैं |
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वैसा ही एक आत्मसूर्य कूटस्थ है, जिसकी आभा निरंतर सदा हमारे समक्ष रहे, वास्तव में वह हम स्वयं ही हैं | उस ज्योतिषांज्योति आत्मज्योति के चैतन्य को निरंतर प्रज्ज्वलित रखें और अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को उसी में विलीन कर दें | वह कूटस्थ ही परमशिव है, वही नारायण है, वही विष्णु है, वही परात्पर गुरु है और वही परमेष्ठी परब्रह्म हमारा वास्तविक अस्तित्व है |
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जो नारकीय जीवन हम जी रहे हैं उससे तो अच्छा है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दें | या तो यह देह ही रहेगी या लक्ष्य की प्राप्ति ही होगी जो हमारे जीवन का सही और वास्तविक उद्देश्य है | भगवान हमें सदा सफलता दें |
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ॐ तत्सत् ! ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
१० नवम्बर २०१७
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इस संसार में हमारे बारे में कोई क्या सोचता है और कौन क्या कहता है, इसकी परवाह न करते हुए निरंतर हम अपने पथ पर अग्रसर रहें, चलते रहें, चलते रहें, चलते रहें, चलते रहें, और कहीं पर भी न रुकें | अपनी विफलताओं व सफलताओं की ओर भी न देखें, वे एक अवसर के रूप में आई थीं, कुछ सिखाने के लिए, और कुछ भी उनका महत्त्व नहीं था | महत्व इस बात का भी नहीं है कि अपने साथ क्या हो रहा है, महत्व सिर्फ इस बात का है कि ये अनुभव हमें क्या सिखा रहे हैं और क्या बना रहे हैं | हर परिस्थिति कुछ ना कुछ सीखने का एक अवसर है | कौन क्या सोचता है या कहता है, यह उसकी समस्या है, हमारी नहीं | हमारा कार्य सिर्फ चलते रहना है क्योंकि ठहराव मृत्यु और चलते रहना ही जीवन है | इस यात्रा में वाहन यह देह पुरानी और जर्जर हो जायेगी तो दूसरी देह मिल जायेगी, पर अपनी यात्रा को मत रोकें, चलते रहें, चलते रहें, चलते रहें, तब तक चलते रहें, जब तक अपने लक्ष्य को न पा लें |
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अंशुमाली मार्तंड कमलिनीकुलवल्लभ भुवनभास्कर भगवान आदित्य जब चमकती हुई अपनी दिव्य आभा और प्रकाश के साथ अपने पथ पर अग्रसर होते हैं, तब मार्ग में कहीं भी किंचित भी तिमिर का कोई अवशेष उन्हें नहीं मिलता | उन्हें क्या इस बात की चिंता होती है कि मार्ग में क्या घटित हो रहा है ? निरंतर अग्रसर वे भगवान भुवन भास्कर आदित्य ही इस साधना पथ पर हमारे परम आदर्श हैं जो सदा प्रकाशमान और गतिशील हैं |
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वैसा ही एक आत्मसूर्य कूटस्थ है, जिसकी आभा निरंतर सदा हमारे समक्ष रहे, वास्तव में वह हम स्वयं ही हैं | उस ज्योतिषांज्योति आत्मज्योति के चैतन्य को निरंतर प्रज्ज्वलित रखें और अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को उसी में विलीन कर दें | वह कूटस्थ ही परमशिव है, वही नारायण है, वही विष्णु है, वही परात्पर गुरु है और वही परमेष्ठी परब्रह्म हमारा वास्तविक अस्तित्व है |
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जो नारकीय जीवन हम जी रहे हैं उससे तो अच्छा है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दें | या तो यह देह ही रहेगी या लक्ष्य की प्राप्ति ही होगी जो हमारे जीवन का सही और वास्तविक उद्देश्य है | भगवान हमें सदा सफलता दें |
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ॐ तत्सत् ! ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
१० नवम्बर २०१७
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