म्यांमा(र) (बर्मा) के बारे में कुछ पंक्तियाँ ......
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म्यांमा(र) (पुराना नाम ब्रह्मदेश और कालान्तर में बर्मा) में अनेक हिन्दू भारतीय मारवाड़ी उद्योगपति और अन्य व्यवसायी स्थायी रूप से बस गये थे| वे बहुत समृद्ध थे| पर वहाँ साम्यवादी विचारधारा के सैनिक शासन के आने के बाद सभी भारतीय मूल के उद्योगपति और व्यवसायी बापस भारत लौट आये| मेरा ऐसे अनेक लोगों से परिचय हुआ है| एक तो हमारे ही नगर के बहुत अधिक प्रतिष्ठित दानवीर उद्योगपति स्व.सेठ चौथमल जी गोयनका थे| भारत में "विपश्यना" (विपासना) साधना पद्धति के सबसे बड़े गुरु आचार्य स्व.सेठ सत्यनारायण जी गोयनका भी बर्मा से ही बापस आये थे| मूल रूप से वे चूरू जिले के थे| अन्य भी अनेक लोगों से मेरा मिलना हुआ है जो दक्षिण भारत के नगरों में बस गए थे|
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सन १९३७ तक बर्मा भारत का ही भाग था| सन १९३७ में अंग्रेजों ने इसे भारत से पृथक कर दिया था| ४ जनवरी १९४८ को इसे ब्रिटेन से स्वतन्त्रता मिली| स्वतन्त्रता के बाद यहाँ अनेक गृहयुद्ध हुए| ब्रिटिश शासन के दौरान बर्मा दक्षिण-पूर्व एशिया के सबसे धनी देशों में से था| विश्व का सबसे बड़ा चावल-निर्यातक होने के साथ शाल (टीक) सहित कई तरह की लकड़ियों का भी बड़ा उत्पादक था| वहाँ के खदानों से टिन, चांदी, टंगस्टन, सीसा, तेल आदि प्रचुर मात्रा में निकाले जाते थे| द्वितीय विश्वयुद्ध में खदानों को जापानियों के कब्ज़े में जाने से रोकने के लिए अंग्रेजों ने भारी मात्रा में बमबारी कर के नष्ट कर दिया था| स्वतंत्रता के बाद दिशाहीन समाजवादी नीतियों ने जल्दी ही बर्मा की अर्थ-व्यवस्था को कमज़ोर कर दिया और सैनिक सत्ता के दमन और लूट ने बर्मा को दुनिया के सबसे गरीब देशों की कतार में ला खड़ा किया| यहाँ इतना अन्न होता था कि सड़क का एक कुत्ता भी भूखे पेट नहीं सोता था| पर समाजवादी नीतियों ने इस देश का इतना बुरा हाल कर दिया था कि आधी आबादी भूखे पेट सोने लगी थी|
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यहाँ भारत के अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फर को कैद कर रखा गया और यहीं उसे दफ़नाया गया| बरसों बाद बाल गंगाधर तिलक को बर्मा की मांडले जेल में कैद रखा गया| रंगून और मांडले की जेलें अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों की गवाह हैं| बर्मा में बड़ी संख्या में गिरमिटिया मजदूर ब्रिटिश शासन की गुलामी के लिए बिहार से ले जाए गए थे और वे कभी लौट कर नहीं आ सके| उनके वंशज वहाँ रहते हैं| द्वितीय विश्वयुद्ध में यहाँ लाखों भारतीय सैनिक मारे गए थे| यह वो पवित्र धरती है जहां से सुभाष चंद्र बोस ने गरजकर कहा था कि तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा| जब नेताजी ने यहां से आजाद हिंद फौज का ऐलान किया तो भारत में अंग्रेजी शासन की जड़ें हिल गईं थीं| जब अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्र कराने के लिए देश के वीरों को अपना घर छोड़ना पड़ता था तो म्यांमा(र) यानि बर्मा उनका दूसरा घर बन जाता था|
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आजकल वहाँ भारत के प्रधानमंत्री गए हुए हैं| भारत की सुरक्षा के लिए भारत के म्यानमा (र) से अच्छे सम्बन्ध होने अति आवश्यक हैं| बर्मा के सैनिक शासकों ने बंगाल की खाड़ी में "कोको" नाम का एक द्वीप चीन को लीज पर दे दिया था जहाँ से चीन भारत पर जासूसी करता है| बंगाल की खाड़ी में इस द्वीप पर चीन की उपस्थिति भारत के लिए खतरा है|
०६ सितम्बर २०१७
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म्यांमा(र) (पुराना नाम ब्रह्मदेश और कालान्तर में बर्मा) में अनेक हिन्दू भारतीय मारवाड़ी उद्योगपति और अन्य व्यवसायी स्थायी रूप से बस गये थे| वे बहुत समृद्ध थे| पर वहाँ साम्यवादी विचारधारा के सैनिक शासन के आने के बाद सभी भारतीय मूल के उद्योगपति और व्यवसायी बापस भारत लौट आये| मेरा ऐसे अनेक लोगों से परिचय हुआ है| एक तो हमारे ही नगर के बहुत अधिक प्रतिष्ठित दानवीर उद्योगपति स्व.सेठ चौथमल जी गोयनका थे| भारत में "विपश्यना" (विपासना) साधना पद्धति के सबसे बड़े गुरु आचार्य स्व.सेठ सत्यनारायण जी गोयनका भी बर्मा से ही बापस आये थे| मूल रूप से वे चूरू जिले के थे| अन्य भी अनेक लोगों से मेरा मिलना हुआ है जो दक्षिण भारत के नगरों में बस गए थे|
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सन १९३७ तक बर्मा भारत का ही भाग था| सन १९३७ में अंग्रेजों ने इसे भारत से पृथक कर दिया था| ४ जनवरी १९४८ को इसे ब्रिटेन से स्वतन्त्रता मिली| स्वतन्त्रता के बाद यहाँ अनेक गृहयुद्ध हुए| ब्रिटिश शासन के दौरान बर्मा दक्षिण-पूर्व एशिया के सबसे धनी देशों में से था| विश्व का सबसे बड़ा चावल-निर्यातक होने के साथ शाल (टीक) सहित कई तरह की लकड़ियों का भी बड़ा उत्पादक था| वहाँ के खदानों से टिन, चांदी, टंगस्टन, सीसा, तेल आदि प्रचुर मात्रा में निकाले जाते थे| द्वितीय विश्वयुद्ध में खदानों को जापानियों के कब्ज़े में जाने से रोकने के लिए अंग्रेजों ने भारी मात्रा में बमबारी कर के नष्ट कर दिया था| स्वतंत्रता के बाद दिशाहीन समाजवादी नीतियों ने जल्दी ही बर्मा की अर्थ-व्यवस्था को कमज़ोर कर दिया और सैनिक सत्ता के दमन और लूट ने बर्मा को दुनिया के सबसे गरीब देशों की कतार में ला खड़ा किया| यहाँ इतना अन्न होता था कि सड़क का एक कुत्ता भी भूखे पेट नहीं सोता था| पर समाजवादी नीतियों ने इस देश का इतना बुरा हाल कर दिया था कि आधी आबादी भूखे पेट सोने लगी थी|
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यहाँ भारत के अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फर को कैद कर रखा गया और यहीं उसे दफ़नाया गया| बरसों बाद बाल गंगाधर तिलक को बर्मा की मांडले जेल में कैद रखा गया| रंगून और मांडले की जेलें अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों की गवाह हैं| बर्मा में बड़ी संख्या में गिरमिटिया मजदूर ब्रिटिश शासन की गुलामी के लिए बिहार से ले जाए गए थे और वे कभी लौट कर नहीं आ सके| उनके वंशज वहाँ रहते हैं| द्वितीय विश्वयुद्ध में यहाँ लाखों भारतीय सैनिक मारे गए थे| यह वो पवित्र धरती है जहां से सुभाष चंद्र बोस ने गरजकर कहा था कि तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा| जब नेताजी ने यहां से आजाद हिंद फौज का ऐलान किया तो भारत में अंग्रेजी शासन की जड़ें हिल गईं थीं| जब अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्र कराने के लिए देश के वीरों को अपना घर छोड़ना पड़ता था तो म्यांमा(र) यानि बर्मा उनका दूसरा घर बन जाता था|
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आजकल वहाँ भारत के प्रधानमंत्री गए हुए हैं| भारत की सुरक्षा के लिए भारत के म्यानमा (र) से अच्छे सम्बन्ध होने अति आवश्यक हैं| बर्मा के सैनिक शासकों ने बंगाल की खाड़ी में "कोको" नाम का एक द्वीप चीन को लीज पर दे दिया था जहाँ से चीन भारत पर जासूसी करता है| बंगाल की खाड़ी में इस द्वीप पर चीन की उपस्थिति भारत के लिए खतरा है|
०६ सितम्बर २०१७
म्यांमा(र) यानि बर्मा के रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में बसाना एक आत्मघाती कृत्य यानि भारत के लिए आत्महत्या करने जैसा होगा| ये रोहिंग्या जाति बर्मा के अराकान क्षेत्र की रहने वाली विश्व की सर्वाधिक क्रूर और असहिष्णु जातियों में से एक है| ये अन्य किसी का अस्तित्व सहन नहीं कर सकतीं| ये अपनी जनसंख्या अति शीघ्रता से बढाते हैं और फिर दूसरों की बड़ी निर्दयता से हत्याएँ करना आरम्भ कर देते हैं| किसी भी अपने से विरोधी इंसान को जान से मार कर ये हाथ तक नहीं धोते| विधर्मी की ह्त्या को ये अपना धार्मिक दायित्व मानते हैं|
ReplyDeleteबर्मा के बौद्ध जो विश्व के सर्वाधिक शांतिप्रिय लोगों में आते हैं, कब तक अपने लोगों की क्रूरतम हत्याएँ सहन करते? उन्होंने आत्मरक्षा में प्रतिकार करना आरम्भ कर दिया| अब विश्व का कोई भी देश इन रोहिंग्यों को अपने यहाँ नहीं लेना चाहता, सिर्फ भारत के ही कुछ आत्मघाती लोग इन्हें भारत में बसाना चाहते हैं| यदि ये भारत में बस गए तो यह भारत का दुर्भाग्य होगा|