श्राद्ध पक्ष .....
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आज से श्राद्ध पक्ष का प्रारम्भ है| श्राद्ध पक्ष में क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इस पर प्रामाणिक रूप से विचार करना चाहिए|
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सभी श्रद्धालू श्राद्ध तो मनाते हैं, पर कई कठिनाइयाँ भी आती हैं, जैसे भोजन के लिए ब्राह्मण देवता नहीं मिलते, गौ ग्रास के लिए देसी गाएँ नहीं मिलती, कौवों के तो दर्शन ही दुर्लभ हो गये है| छोटे कस्बों और गाँवों में तो यह समस्या कम है, पर बड़े नगरों में तो बहुत अधिक है|
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आज से श्राद्ध पक्ष का प्रारम्भ है| श्राद्ध पक्ष में क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इस पर प्रामाणिक रूप से विचार करना चाहिए|
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सभी श्रद्धालू श्राद्ध तो मनाते हैं, पर कई कठिनाइयाँ भी आती हैं, जैसे भोजन के लिए ब्राह्मण देवता नहीं मिलते, गौ ग्रास के लिए देसी गाएँ नहीं मिलती, कौवों के तो दर्शन ही दुर्लभ हो गये है| छोटे कस्बों और गाँवों में तो यह समस्या कम है, पर बड़े नगरों में तो बहुत अधिक है|
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आज की पीढी को तो पता ही नहीं है कि श्राध्द कर्म कैसे करते हैं| लोगों की श्रद्धा भी कम होती जा रही है| पुरुषों की तुलना में महिलाओं को धर्म-कर्म का अधिक ज्ञान है| मुझे यह सत्य लिखने में तनिक भी संकोच नहीं है कि हिन्दू समाज में धर्म-कर्म यदि जीवित हैं तो कुछ कुछ संस्कारित महिलाओं के कारण ही जीवित हैं| महिलाओं में धार्मिकता पुरुषों से अधिक है| पर आज की जो महिलाओं की युवा पीढी है उसे तो धर्म-कर्म का बिलकुल भी ज्ञान नहीं है| जब तक वे बड़ी होंगी तब तक लगता है धर्म-कर्म सब समाप्त होने लगेंगे|
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मुझे तो भविष्य से कोई अपेक्षा नहीं है| जो उचित लगे वह निज जीवन काल में ही कर दो| भविष्य से कोई अपेक्षा मत रखो|
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पुनश्चः : यह मेरी कोई व्यक्तिगत समस्या नहीं है| यह तो समाज की एक समस्या है | व्यक्तिगत रूप से मेरी कोई समस्या नहीं है |
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्चः : आधे से अधिक हिन्दू तो श्राद्ध को मानते ही नहीं हैं| बहुत ही अल्प संख्या में ऐसे हैं जो विधि-विधान से करते हैं| ब्राह्मणों के विरुद्ध इतना अधिक दुष्प्रचार हुआ है कि समाज के एक बड़े वर्ग ने तो ब्राह्मणों को निमंत्रित करना ही बंद कर दिया है| ब्राह्मण के स्थान पर वे लोग किसी तीर्थ स्थान पर जाकर साधुओं का भंडारा कर के आ जाते हैं| अधिकाँश ब्राह्मणों ने भी कर्मकांड बंद कर दिया है|
मुझे लगता है कि आज की अधिकाँश मानवता पितृदोष से ग्रस्त है| पर किसी को यह बात कहेंगे तो वह निश्चित रूप से हमारी हँसी ही उड़ायेगा| पितृदोष से मुक्त होने का सुअवसर यह श्राद्ध पक्ष है|
आज की पीढी को तो पता ही नहीं है कि श्राध्द कर्म कैसे करते हैं| लोगों की श्रद्धा भी कम होती जा रही है| पुरुषों की तुलना में महिलाओं को धर्म-कर्म का अधिक ज्ञान है| मुझे यह सत्य लिखने में तनिक भी संकोच नहीं है कि हिन्दू समाज में धर्म-कर्म यदि जीवित हैं तो कुछ कुछ संस्कारित महिलाओं के कारण ही जीवित हैं| महिलाओं में धार्मिकता पुरुषों से अधिक है| पर आज की जो महिलाओं की युवा पीढी है उसे तो धर्म-कर्म का बिलकुल भी ज्ञान नहीं है| जब तक वे बड़ी होंगी तब तक लगता है धर्म-कर्म सब समाप्त होने लगेंगे|
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मुझे तो भविष्य से कोई अपेक्षा नहीं है| जो उचित लगे वह निज जीवन काल में ही कर दो| भविष्य से कोई अपेक्षा मत रखो|
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पुनश्चः : यह मेरी कोई व्यक्तिगत समस्या नहीं है| यह तो समाज की एक समस्या है | व्यक्तिगत रूप से मेरी कोई समस्या नहीं है |
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्चः : आधे से अधिक हिन्दू तो श्राद्ध को मानते ही नहीं हैं| बहुत ही अल्प संख्या में ऐसे हैं जो विधि-विधान से करते हैं| ब्राह्मणों के विरुद्ध इतना अधिक दुष्प्रचार हुआ है कि समाज के एक बड़े वर्ग ने तो ब्राह्मणों को निमंत्रित करना ही बंद कर दिया है| ब्राह्मण के स्थान पर वे लोग किसी तीर्थ स्थान पर जाकर साधुओं का भंडारा कर के आ जाते हैं| अधिकाँश ब्राह्मणों ने भी कर्मकांड बंद कर दिया है|
मुझे लगता है कि आज की अधिकाँश मानवता पितृदोष से ग्रस्त है| पर किसी को यह बात कहेंगे तो वह निश्चित रूप से हमारी हँसी ही उड़ायेगा| पितृदोष से मुक्त होने का सुअवसर यह श्राद्ध पक्ष है|
श्रद्धालुओं को पितृपक्ष में पित्तरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए| यह एक प्रकार की श्रद्धा ही है| जिन्हें कोई कठिनाई हो वे इस विषय के जानकार आचार्यों से परामर्श करें| आजकल पितृदोष का होना अति सामान्य है| जिन्हें पितृदोष है वे इस का निवारण करें|
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>>>>> एक प्रश्न है ...... देश के प्रथम प्रधानमंत्री जो स्वयं को पंडित बताते थे, ने क्या कभी अपने बाप या दादा का श्राद्ध किया था ? फिर वो पंडित कैसे थे ?
>>>>> उनकी पीढ़ियों में क्या इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, और राहुल गाँधी ने क्या कभी अपने बाप-दादों का श्राद्ध किया है?
>>>>> यह निश्चित है कि उनकी वर्त्तमान पीढ़ी पितृदोष से ग्रस्त है, और उनके पूर्वज भी अच्छी गति को प्राप्त नहीं हुए हैं|