निज विवेक का उपयोग .....
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जीवन अति अल्प है, शास्त्र अनंत हैं, न तो उन्हें समझने की बौद्धिक क्षमता है, और न इतना समय और धैर्य | परमात्मा को उपलब्ध होने की अभीप्सा और तड़प अति तीब्र हो और चारों ओर का वातावरण और परिस्थितियाँ विपरीत हों, तो क्या किया जाये? यह एक शाश्वत प्रश्न है|
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हर व्यक्ति की परिस्थितियाँ, संसाधन, सोच और आध्यात्मिक विकास अलग अलग होता है, अतः कोई सर्वमान्य सामान्य उत्तर असंभव है|
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यहाँ एक ही उत्तर हो सकता है, और वह है निज विवेक का उपयोग|
भगवान ने हमें विवेक दिया है, जिसका उपयोग करते हुए अपनी वर्त्तमान परिस्थितियों में जो भी सर्वश्रेष्ठ हो सकता है, वह करें| सारे कार्य निज विवेक के प्रकाश में करें|
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जीवन अति अल्प है, शास्त्र अनंत हैं, न तो उन्हें समझने की बौद्धिक क्षमता है, और न इतना समय और धैर्य | परमात्मा को उपलब्ध होने की अभीप्सा और तड़प अति तीब्र हो और चारों ओर का वातावरण और परिस्थितियाँ विपरीत हों, तो क्या किया जाये? यह एक शाश्वत प्रश्न है|
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हर व्यक्ति की परिस्थितियाँ, संसाधन, सोच और आध्यात्मिक विकास अलग अलग होता है, अतः कोई सर्वमान्य सामान्य उत्तर असंभव है|
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यहाँ एक ही उत्तर हो सकता है, और वह है निज विवेक का उपयोग|
भगवान ने हमें विवेक दिया है, जिसका उपयोग करते हुए अपनी वर्त्तमान परिस्थितियों में जो भी सर्वश्रेष्ठ हो सकता है, वह करें| सारे कार्य निज विवेक के प्रकाश में करें|
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उच्च स्तर की आध्यात्मिक साधना अपनी गुरु परम्परा के अनुसार ही करें |
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ॐ तत्सत् | हर हर महादेव ! ॐ ॐ ॐ ||
उच्च स्तर की आध्यात्मिक साधना अपनी गुरु परम्परा के अनुसार ही करें |
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ॐ तत्सत् | हर हर महादेव ! ॐ ॐ ॐ ||
परम शिवत्व का बोध हमारी शाश्वत जिज्ञासा है,
ReplyDeleteयही हमारी गति है.
शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि !
ॐ ॐ ॐ !!
"जीवन अपनी पूर्णता यानि परम शिवत्व में जागृति है,
ReplyDeleteकोई खोज नहीं".
शिवोहं शिवोहं ! अहं ब्रह्मास्मि !
ॐ ॐ ॐ !!