Friday, 8 September 2017

जगत मजूरी देत है, क्यों न दे भगवान ......

जगत मजूरी देत है, क्यों न दे भगवान ......
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मुझे जीवन में ऐसे अनेक साधक मिले हैं जो अपना दैनिक कार्य करते हुए भी नित्य नियम से कम से कम कुल तीन घंटों तक, और सप्ताह में एक दिन कुल आठ घंटों तक परमात्मा का ध्यान करते थे | मुझे ऐसे साधकों से बड़ी प्रेरणा मिलती थी | ऐसे ही साधकों से मिलने में आनंद आता है | ऐसे साधकों में नौकरी करने वाले भी थे और स्वतंत्र व्यवसाय करने वाले भी | कुछ परिचित लोगों ने तो सेवानिवृति के पश्चात् अपना पूरा समय ही परमात्मा का ध्यान और सेवा के लिए समर्पित कर दिया |
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मुझे स्वयं पर तरस आता है | जब नौकरी करता था तब नित्य कम से कम आठ-दस घंटों तक काम करना पड़ता था तब जाकर वेतन मिलता था | फिर भी नित्य दो-तीन घंटे भगवान के लिए निकाल ही लिया करता था |
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पर अब सेवा निवृति के पश्चात वे ही आठ-दस घंटे परमात्मा को नहीं दे सकता, बड़े शर्म की बात है | लानत है ऐसे जीवन पर | धीरे धीरे समय बढ़ाना चाहिए | प्रमाद और दीर्घसूत्रता जैसे विकार उत्पन्न हो रहे हैं, जिनसे विक्षेप हो रहा है | अतः साधू, सावधान ! संभल जा, अन्यथा सामने नर्क की अग्नि है |
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कोई प्रार्थना भी नहीं कर सकता | प्रार्थना तो उस से की जाती है जो स्वयं से दूर हो | प्रार्थना के लिए कुछ तो दूरी चाहिए | पर यहाँ तो कुछ दूरी है ही नहीं |

हे प्रभु, आप ने ह्रदय में तो बैठा लिया पर अपने ध्यान से विमुख मत करो |
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मित्रों को यही कहना चाहूँगा कि खूब ध्यान करो | यह संसार भी मजदूरी देता ही है, तो भगवान क्यों नहीं देंगे ? भगवान के लिए खूब मजदूरी करो | जितनी मजदूरी करोगे उससे अधिक ही मिलेगा |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. कैसा भी दिन हो, कैसी भी परिस्थिति या मनोस्थिति हो, नियमित साधना में मन न लगे तो भी निर्धारित समय तक एक ही आसन में बैठने का अभ्यास करो | सिर्फ ऐसी बीमारी में जब उठ नहीं सकते हो तभी लेटे लेटे स्मरण का अभ्यास करो |
    संकल्प किया हुआ निश्चित समय परमात्मा को देना ही है | ॐ ॐ ॐ ||

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