Tuesday, 19 September 2017

हृदय की गहन पीड़ा .....

हृदय की गहन पीड़ा .....
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आत्मा और हृदय में सदा एक घनीभूत अभीप्सा थी कि सारा जीवन परमात्मा के ध्यान में ही व्यतीत किया जाए, व एक अनुकूल वातावरण में, ऐसे ही लोगों के साथ रहा जाए जो सदा परमात्मा का ध्यान करते हों| पर इस जीवन के प्रारब्ध में ऐसा होना नहीं लिखा था| निम्न प्रकृति और अवचेतन में छिपे सूक्ष्मतम नकारात्मक संस्कारों ने इस मायावी संसार से परे कभी नहीं होने दिया| पर इसकी पीड़ा सदा बनी रही|
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जीवन एक अनंत सतत प्रक्रिया है| हर संकल्प और हर अभीप्सा अवश्य पूर्ण होती है| आत्मा की अभीप्सा सिर्फ परमात्मा के लिए ही होती है, वह निश्चित ही कभी न कभी तो पूर्ण होगी ही| अभी तो किसी भी तरह की कोई अपेक्षा व कोई कामना नहीं है, और न ही भगवान से कोई प्रार्थना है| जैसी हरि इच्छा वही मेरी इच्छा| पूर्वजन्मों की कुछ वासनाएँ अवशिष्ट थीं इसलिए यह जन्म लेना पड़ा| अब और कोई वासना न रहे|
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हमारा जन्म इसीलिये होता है कि पूर्वजन्मों में हमने मुक्ति का कोई उपाय नहीं किया| इसमें दोष हमारा ही है, किसी अन्य का नहीं| इस जन्म में भी यह बात जब तक समझ में आती है तब तक बहुत देर हो जाती है|
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परमात्मा के साकार रूप आप सभी निजात्माओं को नमन ! आप सब के ह्रदय में परमात्मा का अहैतुकी परम प्रेम जागृत हो| सभी का कल्याण हो|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
आश्विन कृ.१२, वि.सं.२०७४
१७ सितम्बर २०१७

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