अपनी
अति अल्प और अति सीमित बुद्धि द्वारा शास्त्रों को समझने का प्रयास मेरे
लिए ऐसे ही है जैसे एक छोटी सी कटोरी में अथाह महासागर को भरने का प्रयास |
बुद्धि में क्षमता नहीं है कुछ भी समझने की | अब तो वह कटोरी ही महासागर
में फेंक दी है | और करता भी क्या ? अन्य कुछ संभव ही नहीं था |
जब परमात्मा समक्ष ही हैं, कोई दूरी ही नहीं है, साक्षात ह्रदय में बैठे हैं तो बस उनके बारे में क्या जानना ? उन में खो जाने यानि उन में रमण करने में ही सार्थकता है | सारी बुद्धि को तिलांजलि दे दी है | कोई बौद्धिक ही नहीं किसी भी तरह की आध्यात्मिक चर्चा अब नहीं करना चाहूँगा | हमारा अस्तित्व ही परमात्मा है, वही उस परम तत्व को व्यक्त करेगा |
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
जब परमात्मा समक्ष ही हैं, कोई दूरी ही नहीं है, साक्षात ह्रदय में बैठे हैं तो बस उनके बारे में क्या जानना ? उन में खो जाने यानि उन में रमण करने में ही सार्थकता है | सारी बुद्धि को तिलांजलि दे दी है | कोई बौद्धिक ही नहीं किसी भी तरह की आध्यात्मिक चर्चा अब नहीं करना चाहूँगा | हमारा अस्तित्व ही परमात्मा है, वही उस परम तत्व को व्यक्त करेगा |
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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