Tuesday, 19 September 2017

सीमित और अल्प बुद्धि द्वारा मैं शास्त्रों को नहीं समझ सकता ....

अपनी अति अल्प और अति सीमित बुद्धि द्वारा शास्त्रों को समझने का प्रयास मेरे लिए ऐसे ही है जैसे एक छोटी सी कटोरी में अथाह महासागर को भरने का प्रयास | बुद्धि में क्षमता नहीं है कुछ भी समझने की | अब तो वह कटोरी ही महासागर में फेंक दी है | और करता भी क्या ? अन्य कुछ संभव ही नहीं था |
जब परमात्मा समक्ष ही हैं, कोई दूरी ही नहीं है, साक्षात ह्रदय में बैठे हैं तो बस उनके बारे में क्या जानना ? उन में खो जाने यानि उन में रमण करने में ही सार्थकता है | सारी बुद्धि को तिलांजलि दे दी है | कोई बौद्धिक ही नहीं किसी भी तरह की आध्यात्मिक चर्चा अब नहीं करना चाहूँगा | हमारा अस्तित्व ही परमात्मा है, वही उस परम तत्व को व्यक्त करेगा |
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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