Tuesday, 19 September 2017

इस अनंतता में मेरा कोई भविष्य नहीं है, क्या मैं इन काल-खण्डों में ही बँधा रहूँगा? ........

इस अनंतता में मेरा कोई भविष्य नहीं है, क्या मैं इन काल-खण्डों में ही बँधा रहूँगा? ........
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इस अनंतता में मेरा कोई भविष्य नहीं है| अब तक का यह जीवन एक स्वप्न था, भविष्य भी मात्र एक कल्पना है| पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है जिससे दिन रात बनते हैं, और काल-खंडों का निर्माण होता है| इस जीवन से पूर्व भी पता नहीं मैनें कितने अज्ञात जन्म लिए, कितने जीवन जीये, वह सब अज्ञात है| भविष्य भी एक कोरी कल्पना है|
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क्या मैं इन काल-खण्डों में ही बँधा रहूँगा? नहीं नहीं बिलकुल नहीं| इस काल-खंड से परे मैं सूर्य हूँ, मैं प्रकाश हूँ, मैं बार बार इस जीवन का आनंद लेने आता हूँ| मैं स्वयं ही आनंद हूँ| मैं स्वयं ही अनंतता हूँ| मेरी कोई आयु नहीं है, मैं अनंत हूँ| मैं परमात्मा की अनंतता हूँ, मैं परमात्मा का आनंद हूँ| मैं ही परम ब्रह्म और मैं ही परम शिव हूँ| किसी भी तरह की लघुता और सीमितता मुझे स्वीकार नहीं है| मेरा न कोई आदि है और न कोई अंत| यह प्रकृति जगन्माता है जो निरंतर अपना कार्य कर रही है| मैं ही जगन्माता का समस्त सौन्दर्य हूँ|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
आश्विन कृष्ण १२, वि.सं. २०७४
१७ सितम्बर २०१७

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