राष्ट्रहित सर्वोपरी॥
.
धर्म और ईश्वर की सर्वोच्च व सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति भारतवर्ष में हुई है, इसलिए हमें भारतवर्ष से प्रेम है। धर्म सनातन व अमर है। धर्म ही सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन कर रहा है। धर्म ही भारत का प्राण है।
.
हमारी आध्यात्मिक साधना धर्म और राष्ट्र के लिए ही है, न कि स्वयं (व्यक्ति-विशेष) के लिए। हम यहाँ किसी के या स्वयं के मनोरंजन या अहंकार-तृप्ति के लिए नहीं हैं।
.
साकार रूप में वह सर्वव्यापी अनंतातीत परमशिव भाव में स्थित होकर -- कूटस्थ सूर्यमंडल में पुरुषोत्तम का ध्यान है। निराकार रूप में ब्रह्मभाव है। यहाँ निराकार का अर्थ है -- सारे रूप जिसके हैं, वह निराकार है। भगवती स्वयं प्राण-तत्व कुंडलिनी के रूप में जागृत होकर अपनी साधना स्वयं कर रही है। दूसरे शब्दों में भगवान हमें एक निमित्त माध्यम बनाकर अपनी साधना स्वयं कर रहे हैं। हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। एकमात्र अस्तित्व सिर्फ परमात्मा का है।
.
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ जुलाई २०२४
No comments:
Post a Comment