Friday, 4 July 2025

समय अब अधिक नहीं बचा है ---

 समय अब अधिक नहीं बचा है ---

.
अब सोच-विचार करने, या इधर-उधर कहीं भी जाने का समय नहीं है। उपदेशों का कोई अंत नहीं है। व्यभिचारिक वासनाएँ लगातार पीछे पड़ी हैं। दृढ़ इच्छा और संकल्प-शक्ति का भी अभाव है। ऐसे विकट आपत्काल मे एकमात्र आश्रय सच्चिदानंद भगवान स्वयं हैं।
.
अब किसी उपदेश, धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य, कर्म-अकर्म आदि का कोई महत्व नहीं रहा है। शांभवी-मुद्रा में भगवान वासुदेव स्वयं यहाँ बैठे हैं, और कूटस्थ में अपने ही परमशिव रूप का ध्यान कर रहे हैं। उनके सिवाय पूरी सृष्टि में, व सृष्टि से परे कोई अन्य नहीं है। वे चित्त में इतने गहरे समा गए हैं कि मेरा अब उनसे पृथक कोई अस्तित्व नहीं रहा है।
. निरंतर ब्रह्मभाव में रहें। मैं यह "शरीर महाराज" नहीं, साक्षात परमशिव परमब्रह्म सच्चिदानंद हूँ। इन हाथ पैर आँख कान नाक आदि इंद्रियों की सभी क्रियाएँ स्वयं भगवान परमशिव कर रहे हैं। वे ही इन आँखों से देख रहे हैं, कानों से सुन रहे हैं, पैरों से चल रहे हैं, और बुद्धि से सोच भी रहे हैं। वे ही इस व्यक्ति के रूप में स्वयं को व्यक्त कर रहे हैं। यह मन उन्हीं का है। इस के स्वामी साक्षात वे ही हैं। सभी इंद्रियाँ और अन्तःकरण -- वे ही हैं। मेरा एकमात्र संबंध परमब्रह्म परमात्मा से है, जो मैं स्वयं हूँ। जहाँ तक मेरी दृष्टि और कल्पना जाती है, वह सब मैं ही हूँ, यह शरीर महाराज नहीं। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ जुलाई २०२२

No comments:

Post a Comment