Sunday, 25 May 2025

भगवान एक ईर्ष्यालु प्रेमी भी हैं और छलिया भी हैं .....

 भगवान एक ईर्ष्यालु प्रेमी भी हैं और छलिया भी हैं .....

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भगवान की भक्ति एक अति-मानवीय असंभव कार्य है| भगवान हम सब को सर्वाधिक प्रिय हैं, पर वे बड़े से बड़े ईर्ष्यालु प्रेमी हैं| वे शत-प्रतिशत प्रेम मांगते हैं, ९९.९९% भी उनके यहाँ नहीं चलता| १००% से कम उन्हें कुछ स्वीकार्य ही नहीं है| यही तो हम सब से नहीं होता, इसी लिए हम सब इस भवसागर में अटके हुए हैं| मन में किंचित भी तुच्छ से तुच्छ कोई अन्य कामना हो तो वे इसे व्यभिचारिणी भक्ति बताते हैं, जो उन्हें स्वीकार्य नहीं है| उन्हें तो अव्यभिचारिणी और अनन्य भक्ति चाहिए| अनन्य का अर्थ है जहाँ कोई अन्य है ही नहीं, जहाँ भक्त और भगवान में भी कोई भेद नहीं है| यह बहुत कठिन और लगभग असंभव है, पर हम सब उनके बिना रह भी तो नहीं सकते|
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वे श्रीहरिः, अपना "हरिः" नाम सार्थक अवश्य करेंगे| वे तो "चोर-जार-शिखामणि" और "दुःख-तस्कर" भी हैं| उन के लिए क्या असंभव है? इस अवचेतन अन्तःकरण में जो भी स्पृहायें हैं, उन सब का हरण वे ही कर सकते हैं| वास्तव में हम सब तो निमित्त मात्र हैं, कर्ता तो वे ही हैं| हमारी कोई औकात नहीं है उन की भक्ति करने की, जो करना है वह वे ही करेंगे| उनकी कृपा-दृष्टि ही कुछ करा सकती है| वे हमारा पूर्ण समर्पण स्वीकार करें|
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भगवान में एक कमजोरी है, वे भी हमारे बिना नहीं रह सकते| गीता में वे कहते हैं .....
"सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च|
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्||१५:१५||"
अर्थात् मैं ही समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ| मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन (उनका अभाव) होता है| समस्त वेदों के द्वारा मैं ही वेद्य (जानने योग्य) वस्तु हूँ तथा वेदान्त का और वेदों का ज्ञाता भी मैं ही हूँ||"
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अपनी कृपा से वे सदा हमारे सन्मुख हैं ...... "सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो"|
हमारे ह्रदय में कौन धड़क रहे हैं? इन नासिकाओं से कौन सांस ले रहे हैं? इन आँखों से कौन देख रहे हैं? रामचरितमानस में उन्होने ही तो कहा है .....
"नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो| सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो||
करनधार सदगुर दृढ़ नावा| दुर्लभ साज सुलभ करि पावा||"
"जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ|
सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ||"
अर्थात् यह मनुष्य का शरीर भवसागर से तारने के लिए बेड़ा (जहाज) है| मेरी कृपा ही अनुकूल वायु है| सद्गुरु इस मजबूत जहाज के कर्णधार (खेने वाले) हैं| इस प्रकार दुर्लभ (कठिनता से मिलने वाले) साधन सुलभ होकर (भगवत्कृपा से सहज ही) उसे प्राप्त हो गए हैं|| जो मनुष्य ऐसे साधन पाकर भी भवसागर से न तरे, वह कृतघ्न और मंद बुद्धि है और आत्महत्या करने वाले की गति को प्राप्त होता है||
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बड़े छलिया हैं| कभी कुछ और कभी कुछ कहते हैं| उनका काम छल करना है, और हमारा काम समर्पण करना है| भक्ति तो वे ही करेंगे| भक्त भी वे ही हैं, और भगवान भी वे ही हैं|
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ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ मई २०२०

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