परोपकार की भावना से जितना हम दूसरों को देते हैं, उससे कई गुणा अधिक हमें प्रकृति प्रदान करती है| समष्टि के कल्याण के लिए ही हम परमात्मा द्वारा परमात्मा के ही ध्यान का निमित्त बनते हैं| यह हमारा "निष्काम कर्मयोग" भी है, और "आत्मोत्थान" का मूल भी| यह हमें क्षुद्र से महान बनाता है|
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इस समय तो परमात्मा के प्रति परमप्रेम उमड़ रहा है| यह उनका ही प्रेम है, जो वे ही कर रहे हैं| यह आत्मानुभूति का आनंद भी दे रहा है| कोई इच्छा नहीं है, कोई कामना नहीं है, कोई आकांक्षा नहीं है| अब और कुछ नहीं चाहिए, जब परमात्मा स्वयम् ही प्रत्यक्ष बिराजमान हैं|
ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
२६ मर्च २०२१
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