Tuesday, 25 March 2025

सिर्फ तीन बातें कहने के लिए ही यहाँ उपस्थित हूँ ---

(१) पूरी सृष्टि, यानि सम्पूर्ण प्रकृति ही भगवान का नाम जप रही है। हम निमित्त मात्र होकर उसे सिर्फ सुन ही सकते हैं। हम न तो कर्ता हैं, और न श्रोता। कर्ताभाव एक अहंकार मात्र है। भगवान स्वयं ही अपना नाम जप रहे हैं, और स्वयं ही उसे सुन रहे हैं। दृष्टा भी वे हैं, और दृष्टि व दृश्य भी वे ही हैं। अंततः भोक्ता भी वे ही हैं।

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(२) हम कोई मंगते-भिखारी नहीं हैं। हम भगवान को अपनी पृथकता का बोध, और अपना अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) बापस दे रहे हैं, यानि उनका दिया हुआ सारा सामान उनको बापस लौटा रहे हैं। किसी भी दृष्टि से हम याचक नहीं है। वे स्वयं ही हमारे में व्यक्त हो रहे हैं।
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(३) इस संसार में किसी से कोई अपेक्षा मत रखें। जिनसे भी हम कुछ अपेक्षा रखते हैं, वे ही हमें धोखा देते हैं, और अंततः वे ही हमारा गला काटते हैं। लगता है इस सृष्टि का यही नियम है।
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परमात्मा की श्रेष्ठतम अभिव्यक्ति आप सब को नमन॥ हरिः ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
२६ मार्च २०२३

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