Thursday, 13 February 2020

परमात्मा का निरंतर चिंतन ही सदाचार है, अन्य सब व्यभिचार है .....

परमात्मा का निरंतर चिंतन ही सदाचार है, अन्य सब व्यभिचार है| सारे यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह), और सारे नियम (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर-प्रणिधान), भक्त के पीछे-पीछे चलते हैं, भक्त उन के पीछे नहीं| हृदय में परम-प्रेम होने पर भगवान के सारे गुण भक्त में स्वतः खिंचे चले आते हैं| जैसे एक शक्तिशाली चुंबक लौहकणों को अपनी ओर खींच लेता है, वैसे ही भगवान की भक्ति सारे सदगुणों को अपनी ओर खींच लेती है| प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि भी स्वतः ही उपलब्ध हो जाती हैं| वह भूमि भी धन्य और सनाथ हो जाती है जहाँ उनके पैर पड़ते हैं| वे पृथ्वी पर चलते-फिरते देवता हैं| देवता भी उन्हें देखकर आनंदित होकर नृत्य करने लगते हैं| अपना सर्वश्रेष्ठ प्रेम परमात्मा को दें| फिर एक दिन हम पायेंगे कि कहीं कोई पृथकता नहीं है, हम भगवान के साथ एक हैं|
ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ फरवरी २०२०

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