Thursday, 13 February 2020

मेरा "धर्म" क्या है?

मेरा "धर्म" क्या है?
.
हमारे प्रायः सभी धर्मग्रन्थों में धर्म को खूब अच्छी तरह से समझाया गया है, धर्म के लक्षण भी बताए गए हैं| पर गीता में भगवान श्रीकृष्ण जब स्वधर्म और परधर्म की बात कहते हैं तब हम यह सोचने को विवश हो जाते हैं कि हर व्यक्ति का पृथक पृथक स्वधर्म और परधर्म भी होता है| भगवान कहते हैं ....
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्| स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः||३:३५||
अर्थात् सम्यक् प्रकार से अनुष्ठित परधर्म की अपेक्षा गुणरहित स्वधर्म का पालन श्रेयष्कर है; स्वधर्म में मरण कल्याणकारक है (किन्तु) परधर्म भय को देने वाला है||
.
जहाँ तक मैं समझा हूँ यानि जहाँ तक मेरी समझ है ..... धर्म एक ऊर्ध्वमुखी भाव है जो हमें परमात्मा से संयुक्त करता है|
"यथो अभ्युदय निःश्रेयस् सिद्धि स धर्म"| जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस् की सिद्धि हो वही धर्म है| धर्म की यह परिभाषा कणाद ऋषि ने वैशेषिकसूत्रः में की है जो हिंदू धर्म के षड्दर्शनों में से एक है|
"जिससे हमारा सम्पूर्ण सर्वोच्च विकास और सब तरह के दुःखों/कष्टों से मुक्ति हो वही धर्म है|"
यह धर्म की सर्वमान्य हिंदू परिभाषा है| यही वास्तविकता है|
.
जिसका भी ऊर्ध्वमुखी भाव है, जिस में भी परमात्मा के प्रति अहैतुकी परमप्रेम है, व उन्हें पाने की अभीप्सा है, वही धार्मिक है| सही अर्थों में वही एक सच्चा भारतीय भी है| ऐसे लोगो का समूह ही अखंड भारत है| ईश्वर ने यही भाव सम्पूर्ण सृष्टि में फैलाने के लिए भारतवर्ष को चुना है| अतः सनातन धर्म ही भारत है और भारत ही सनातन धर्म है| सनातन धर्म का विस्तार ही भारत का विस्तार है, और भारत का विस्तार ही सनातन धर्म का विस्तार है|
.
सम्पूर्ण ब्रह्मांड मेरा घर है और समस्त सृष्टि मेरा परिवार| जब सारी सृष्टि साँस लेती है तब ही मेरी भी साँसें चलती हैं| समस्त सृष्टि का प्राण ही मेरा अस्तित्व है| मेरा केंद्र सर्वत्र है, परिधि कहीं भी नहीं| मैं अपने प्रियतम के साथ एक हूँ, यह भाव ही मेरा स्वधर्म है, अन्य सब मेरे लिए परधर्म है|
.
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
८ फरवरी २०२०

No comments:

Post a Comment