धर्म और राष्ट्र की रक्षा हमारा सर्वोपरि दायित्व है .....
सारे उपदेश तभी तक सार्थक हैं जब तक परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति न हो जाये| एक बार उनकी प्रत्यक्ष अनुभूति हो जाये तो उन्हीं की शरणागत होकर उन्हीं में समर्पित हो जाना चाहिए| फिर कोई कर्तव्य नहीं रहता| तब तक अपना साधन-भजन नहीं छोडना चाहिए| गीता पाठ, गायत्री जप, प्राणायाम, ध्यान, मंत्रजप आदि का अपनी अपनी गुरु-परंपरानुसार नित्य नियमित अभ्यास अवश्य करना चाहिए|
समाज और राष्ट्र का ऋण हमारे ऊपर है| राष्ट्र है, तभी हम है, तभी हमारा धर्म और हमारा अस्तित्व है| अतः राष्ट्रहित में अपने सभी कर्म करने चाहियें| परमात्मा की व धर्म की सर्वोच्च और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति भारतवर्ष में ही हुई है| जो हमें परमात्मा का साक्षात्कार करवा सकता है वह सनातन धर्म है| अतः धर्म और राष्ट्र की रक्षा हमारा सर्वोपरि दायित्व है| सनातन धर्म ही हमारी राजनीति हो| ॐ तत्सत् ||
समाज और राष्ट्र का ऋण हमारे ऊपर है| राष्ट्र है, तभी हम है, तभी हमारा धर्म और हमारा अस्तित्व है| अतः राष्ट्रहित में अपने सभी कर्म करने चाहियें| परमात्मा की व धर्म की सर्वोच्च और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति भारतवर्ष में ही हुई है| जो हमें परमात्मा का साक्षात्कार करवा सकता है वह सनातन धर्म है| अतः धर्म और राष्ट्र की रक्षा हमारा सर्वोपरि दायित्व है| सनातन धर्म ही हमारी राजनीति हो| ॐ तत्सत् ||
५ फरवरी २०२०
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