Tuesday, 9 January 2018

हमारी सृष्टि हमारी स्वयं की ही रचना है ......

हमारी सृष्टि हमारी स्वयं की ही रचना है ......
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हमारे विचार ही घनीभूत होकर हमारे चारों ओर सृष्ट हो रहे हैं| जैसा हम सोचते हैं, वैसी ही सृष्टि हमारे लिए सृष्ट हो जाती है| हर क्रिया की प्रतिक्रया भी होती है| यही कर्मफलों का सिद्धांत है| हमारे विचार ही हमारे कर्म हैं| हम परमात्मा के अंश हैं, अतः हमारे सब के विचार ही इस सृष्टि का निर्माण कर रहे हैं| जैसे हमारे विचार होंगे वैसी ही यह सृष्टि होगी| यह सृष्टि जितनी विराट है उतनी ही सूक्ष्म है| हर अणु अपने आप में एक ब्रह्मांड है| हम कुछ भी संकल्प या विचार करते हैं, उसका प्रभाव सृष्टि पर पड़े बिना नहीं रह सकता| इसलिए हमारा हर संकल्प शिव संकल्प हो, और हर विचार शुभ विचार हो|
यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति | दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु || (शुक्लयजुर्वेद, ३४, १)
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आध्यात्मिक दृष्टी से यह सृष्टि नटराज भगवान परमशिव का एक नृत्य मात्र है जिसमें निरंतर ऊर्जा खण्डों और अणुओं का विखंडन और सृजन हो रहा है| जो बिंदु है वह प्रवाह बन जाता है और प्रवाह बिंदु बन जाता है| ऊर्जा कणों की बौछार और निरंतर प्रवाह समस्त भौतिक सृष्टि का निर्माण कर रहे हैं| इन सब के पीछे एक परम चैतन्य है और उसके भी पीछे एक विचार है| समस्त सृष्टि परमात्मा के मन का एक स्वप्न या विचार मात्र है| हम भी परमात्मा के अंश हैं अतः हमारे विचार भी हमारी सृष्टि का निर्माण कर रहे हैं| हम अपने परमशिव चैतन्य में हम रहें तो सब ठीक है अन्यथा सब गलत|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०७ जनवरी २०१८

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