आध्यात्मिक साधना में आने वाली बाधाएँ और उनसे मुक्ति के उपाय .....
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आध्यात्मिक साधना में आने वाली आने वाली बाधाओं और कमियों को निश्चित रूप से दूर किया जा सकता है| साधना के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी ये बाधाएँ हैं....
(१) काम वासना. (२) यश यानी प्रसिद्धि की चाह. (३) दीर्घसूत्रता यानी कार्य को आगे के लिए टालने की प्रवृत्ति. (४) प्रमाद. (५) उत्साह का अभाव.
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उपरोक्त बाधाओं को दूर करने के लिए दो उपाय हैं .....
(१) सात्विक आहार और शास्त्रोक्त विधि से भोजन. (२) कुसंग का त्याग और निरंतर सत्संग.
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भक्ति सूत्रों में नारद जी स्पष्ट कहते हैं कि भक्ति के मार्ग में किसी भी परिस्थिति में कुसंग का त्याग सर्वदा अनिवार्य है| कोई भी व्यक्ति या कोई भी परिस्थिति जो हमें हरि से विमुख करती है, उसका दृढ़ निश्चय से त्याग करने में कोई विलम्ब नहीं करना चाहिए| सनातन धर्म के सभी आचार्यों ने यह बात कही है| चला कर उन्हीं लोगों का साथ करें जो आध्यात्मिक साधना में सहायक हैं, अन्यथा चाहे अकेले ही रहना पड़े| निरंतर हरि-स्मरण का स्वभाव बनाना पडेगा|
भोजन भी पूरी तरह से सात्विक होना चाहिए| हर किसी के हाथ का बना हुआ, या हर किसी के साथ बैठकर भोजन नहीं करना चाहिए| भोजन करने की शास्त्रोक्त विधि है उसका पालन करना चाहिए| आजकल यह बात किसी को कहेंगे तो वह बुरा मानेगा, पर दूसरों से अपेक्षा न करते हुए, स्वयं के निज जीवन में इसका पालन करना चाहिए|
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हरि ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
०८ जनवरी २०१८
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आध्यात्मिक साधना में आने वाली आने वाली बाधाओं और कमियों को निश्चित रूप से दूर किया जा सकता है| साधना के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी ये बाधाएँ हैं....
(१) काम वासना. (२) यश यानी प्रसिद्धि की चाह. (३) दीर्घसूत्रता यानी कार्य को आगे के लिए टालने की प्रवृत्ति. (४) प्रमाद. (५) उत्साह का अभाव.
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उपरोक्त बाधाओं को दूर करने के लिए दो उपाय हैं .....
(१) सात्विक आहार और शास्त्रोक्त विधि से भोजन. (२) कुसंग का त्याग और निरंतर सत्संग.
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भक्ति सूत्रों में नारद जी स्पष्ट कहते हैं कि भक्ति के मार्ग में किसी भी परिस्थिति में कुसंग का त्याग सर्वदा अनिवार्य है| कोई भी व्यक्ति या कोई भी परिस्थिति जो हमें हरि से विमुख करती है, उसका दृढ़ निश्चय से त्याग करने में कोई विलम्ब नहीं करना चाहिए| सनातन धर्म के सभी आचार्यों ने यह बात कही है| चला कर उन्हीं लोगों का साथ करें जो आध्यात्मिक साधना में सहायक हैं, अन्यथा चाहे अकेले ही रहना पड़े| निरंतर हरि-स्मरण का स्वभाव बनाना पडेगा|
भोजन भी पूरी तरह से सात्विक होना चाहिए| हर किसी के हाथ का बना हुआ, या हर किसी के साथ बैठकर भोजन नहीं करना चाहिए| भोजन करने की शास्त्रोक्त विधि है उसका पालन करना चाहिए| आजकल यह बात किसी को कहेंगे तो वह बुरा मानेगा, पर दूसरों से अपेक्षा न करते हुए, स्वयं के निज जीवन में इसका पालन करना चाहिए|
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हरि ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
०८ जनवरी २०१८
परमात्मा को ढूँढ रहा व्यक्ति उस मछली की तरह है जो पानी को ढूँढ रही है.
ReplyDeleteकामना से बड़ा कोई पाप नहीं है|
ReplyDeleteअसंतोष से बड़ा कोई अभिशाप नहीं है|
अपेक्षाओं से बड़ा कोई दुर्भाग्य नहीं है|