Wednesday, 9 August 2017

अभ्यास और वैराग्य .....

अभ्यास और वैराग्य पर लिखकर अनेक मनीषियों ने अपनी लेखनी को धन्य किया है| अभ्यास और वैराग्य की परिणिति है .... समभाव |
अभ्यास और वैराग्य से ही मन वश में होता है | समभाव ही स्थितप्रज्ञता है, यही ज्ञानी होने का लक्षण है | यही ज्ञान है |
भक्ति का अर्थ है परमप्रेम | स्वयं परम प्रेममय हो जाना ही भक्ति है | भक्ति की परिणिति भी समभाव ही है | अतः भक्ति और ज्ञान दोनों एक ही हैं | इनमें कोई अंतर नहीं है |
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मेरी स्वभाविक रूचि वेदांत और योग दर्शन में है | उपनिषदों और गीता को ही प्रमाण मानता हूँ | अब तो मेरी निजानुभुतियाँ ही मार्गदर्शन करती हैं | इष्ट है .... केवल आत्म-तत्व जिसे मैं परमशिव कहता हूँ | परमशिव ही मेरे इष्ट हैं |
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"अभ्यास- वैराग्याभ्यां तन्निरोधः" | महर्षि पातंजलि ने भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के ये दो साधन वैराग्य और अभ्यास ही बताए हैं | मन को समझा बुझा कर युक्ति से नियंत्रित किया जा सकता है बलपूर्वक नहीं | यह युक्ति .... वैराग्य और अभ्यास ही हैं |
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्तियों को सादर नमन !
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. आध्यात्म में सफलता सिर्फ अभ्यास से ही नहीं मिलती, और न यह सिर्फ वैराग्य से ही मिलती है | दोनों का साथ साथ होना आवश्यक है | साधना में भी नियमितता, गहराई और दीर्घता होनी आवश्यक है | साधना को बीच में छोड़ देने वाले अगले कई जन्म तो यों ही भटकता है, फिर बापस अपने मार्ग पर आ जाता है |

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