साधक कौन है ? .....
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साधना के कठिनाइयों से भरे मार्ग पर साधना का आरम्भ तो साधक स्वयं करता है, क्योंकि तब तक अहंभाव प्रबल रहता है| फिर इतनी अधिक कठिनाइयाँ आती हैं कि साधक विचलित हो जाता है|
उस समय गुरु महाराज काम आते हैं| साधक का स्थान वे स्वयं ले लेते हैं और साधना वे ही करते हैं| शरीर और मन तो साधक का ही रहता है पर कर्ता गुरु महाराज हो जाते हैं|
फिर शीघ्र ही वह समय आता है जब गुरु महाराज तो अपने स्थान से हट जाते हैं और उनका स्थान भगवान स्वयं ले लेते हैं| ऐसे समय में साधक का कुछ भी दायित्व नहीं रहता, सब कुछ परमात्मा स्वयं ही बन जाते हैं|
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इससे आगे कहने के लिए और कुछ भी नहीं है| हे परमशिव, आप ही सर्वस्व हैं| "मैं" नहीं आप ही आप रहें| यह "मैं" और "मेरापन" सदा के लिए नष्ट हो जाएँ |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२६ जून २०१७
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साधना के कठिनाइयों से भरे मार्ग पर साधना का आरम्भ तो साधक स्वयं करता है, क्योंकि तब तक अहंभाव प्रबल रहता है| फिर इतनी अधिक कठिनाइयाँ आती हैं कि साधक विचलित हो जाता है|
उस समय गुरु महाराज काम आते हैं| साधक का स्थान वे स्वयं ले लेते हैं और साधना वे ही करते हैं| शरीर और मन तो साधक का ही रहता है पर कर्ता गुरु महाराज हो जाते हैं|
फिर शीघ्र ही वह समय आता है जब गुरु महाराज तो अपने स्थान से हट जाते हैं और उनका स्थान भगवान स्वयं ले लेते हैं| ऐसे समय में साधक का कुछ भी दायित्व नहीं रहता, सब कुछ परमात्मा स्वयं ही बन जाते हैं|
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इससे आगे कहने के लिए और कुछ भी नहीं है| हे परमशिव, आप ही सर्वस्व हैं| "मैं" नहीं आप ही आप रहें| यह "मैं" और "मेरापन" सदा के लिए नष्ट हो जाएँ |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२६ जून २०१७
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