जाति हमारी ब्रह्म है, माता-पिता हैं राम |
घर हमारा शुन्य में, अनहद में विश्राम ||
इस संसार में अपने प्रारब्ध कर्मों का भोग भोगने के लिए बाध्य होकर हम सब को आना ही पड़ा है| तब कोई विकल्प नहीं था| पर अब तो राग-द्वेष भी नष्टप्राय हो चुका है| एकमात्र सम्बन्ध भी सिर्फ परमात्मा से ही रह गया है|
जाति हमारी "अच्युत" है यानि जो जाति परमात्मा की है, वही जाति हमारी भी है| सांसारिक जातियाँ तो इस नश्वर देह महाराज की हैं, इस शाश्वत जीवात्मा की नहीं| इस नश्वर देह महाराज के अवसान के पश्चात् यह नश्वर जाति भी नष्ट हो जायेगी| साथ सिर्फ परमात्मा का ही होगा|
परमात्मा की अनंतता ही हमारा घर है और प्रणव रूपी अनाहत नाद का श्रवण ही विश्राम है| परमात्मा का और हमारा साथ शाश्वत है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
घर हमारा शुन्य में, अनहद में विश्राम ||
इस संसार में अपने प्रारब्ध कर्मों का भोग भोगने के लिए बाध्य होकर हम सब को आना ही पड़ा है| तब कोई विकल्प नहीं था| पर अब तो राग-द्वेष भी नष्टप्राय हो चुका है| एकमात्र सम्बन्ध भी सिर्फ परमात्मा से ही रह गया है|
जाति हमारी "अच्युत" है यानि जो जाति परमात्मा की है, वही जाति हमारी भी है| सांसारिक जातियाँ तो इस नश्वर देह महाराज की हैं, इस शाश्वत जीवात्मा की नहीं| इस नश्वर देह महाराज के अवसान के पश्चात् यह नश्वर जाति भी नष्ट हो जायेगी| साथ सिर्फ परमात्मा का ही होगा|
परमात्मा की अनंतता ही हमारा घर है और प्रणव रूपी अनाहत नाद का श्रवण ही विश्राम है| परमात्मा का और हमारा साथ शाश्वत है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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