अंतर्राष्ट्रीय योग-दिवस की शुभ कामनाएँ :---
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बिना ब्रह्मचर्य के कोई योगी नहीं हो सकता। योग है -- कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर परमशिव से मिलन। बिना ब्रह्मचर्य का पालन किए कोई कुंडलिनी जागरण का प्रयास करेगा, तो उसका मष्तिष्क निश्चित रूप से विक्षिप्त होगा, और वह स्थायी मनोरोगी हो जाएगा।
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खेचरी-मुद्रा को सिद्ध किए बिना योग में सिद्धि नहीं मिलती। इसके लिए योगिराज श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय ने तालव्य क्रिया का अभ्यास बताया था। इसमें जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर एक झटके के साथ बाहर की ओर फेंक देते हैं। बार-बार यह अभ्यास किशोरावस्था से ही सिखाना चाहिए। साथ साथ जीभ के अगले भाग को सूती कपड़े से पकड़ कर दिन में तीन-चार बार धीरे धीरे बिना किसी कष्ट के खींच कर लंबी करने का अभ्यास करना चाहिए। खेचरी का यह तो है भौतिक पक्ष। दूसरा है मानसिक पक्ष जो एक जन्म में सिद्ध नहीं होता। यह है आकाश में विचरण। एक सिद्ध योगी इस भौतिक शरीर की चेतना से बाहर निकल कर आकाश में ही ध्यानस्थ होता है, और आकाश में विचरण कर के इस देह में बापस आ जाता है। यह खेचरी की सिद्धि है। जो खेचरी नहीं कर सकते वे अर्ध-खेचरी का अभ्यास करें। साधना के समय जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर तालु से सटाकर रखें।
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क्रिया-योग के अभ्यास से कुंडलिनी का जागरण होता है। लेकिन इसका अभ्यास गुरु के मार्गदर्शन में ही होना चाहिए। योग में सिद्धि के लिए एक स्वस्थ शरीर, योग-क्रियाओं का ज्ञान, मन में लगन, भक्ति और अभीप्सा चाहिए। हठ योग का ज्ञान और अभ्यास -- अन्य योगों की साधना के लिए आवश्यक है। हठयोग के तीन ही प्रामाणिक ग्रंथ हैं --
(१) घेरण्ड संहिता, (२) हठयोग प्रदीपिका, और (३) शिव-संहिता।
इन्हीं का विस्तार अन्य हजारों पुस्तकें हैं। पातंजलि के 'योगदर्शन' का स्वाध्याय बाद में या साथ-साथ करें।
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वैसे योग साधना का आरंभ यजुर्वेद के कृष्ण-यजुर्वेद भाग से हैं। श्वेताश्वतरोपनिषद का स्वाध्याय उन सब को करना चाहिए जो योगी बनना चाहते हैं। अन्य भी ज्ञात-अज्ञात अनेक उपनिषद हैं। मेरे लिए तो श्रीमद्भगवद्गीता - योग का सर्वोच्च ग्रंथ है।
पुनश्च आप सब को मंगलमय शुभ कामना। भगवान की परम कृपा सभी पर हो।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२१ जून २०२३
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