गर्मी का आनंद लेते हुए स्वयं को सारे संचित व प्रारब्ध कर्मों से मुक्त करें
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आजकल गर्मी खूब पड़ रही है। गर्मी का आनंद लें। रात्री को जल्दी सोने का अभ्यास कीजिये। प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने घर की छत पर या बाहर खुले में भगवान का खूब ध्यान या नामजप करें। इतना आनंद आयेगा, इतना आनंद आयेगा जो अवर्णनीय है। फिर स्वच्छ हवा में घूमें।
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अधिक बोलने से और अधिक विचारों से मन चंचल होता है। वाणी और मन के मौन का अभ्यास करें। जितना आवश्यक है उतना ही बोलें। जप योग के निरंतर अभ्यास से अनावश्यक विचारों का शमन होता है। मन में अनावश्यक विचार न आने दें। सारे विचारों का समर्पण परमात्मा के चिंतन में कर दें। परमात्मा के ध्यान में महा-मौन की अनुभूति होती है। जब महा-मौन की अनुभूति हो, तब उस महा-मौन में ही रहने का अभ्यास करें। स्वयं को परमात्मा को समर्पित कर दें। परमात्मा की अनुभूतियाँ होंगी तब आप आनंद से भर जाओगे।
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सब कुछ भगवान का है। अपने सारे कर्म भी भगवान को समर्पित कर दें। भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं ---
"यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्॥"
"शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः।
सन्न्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि॥" (९:२७-२८)
अर्थात् - "हे कुन्तीपुत्र ! तू जो कुछ करता है, जो कुछ भोजन करता है, जो कुछ यज्ञ करता है, जो कुछ दान देता है और जो कुछ तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर दे। इस प्रकार मेरे अर्पण करने से कर्मबन्धन से और शुभ (विहित) और अशुभ (निषिद्ध) सम्पूर्ण कर्मों के फलोंसे तू मुक्त हो जायगा। ऐसे अपने-सहित सब कुछ मेरे अर्पण करनेवाला और सबसे सर्वथा मुक्त हुआ तू मुझे ही प्राप्त हो जायेगा॥
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और क्या चाहिये ? सब कुछ तो यहाँ भगवान ने हमें दे दिया है। हर समय स्वयं निमित्त मात्र बनकर परमात्मा का चिंतन करो, और परमात्मा को समर्पित हो जाओ।
कृपा शंकर
३१ मई २०१९
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