आचार्य/सद्गुरु की आवश्यकता क्यों है? गुरु कौन हो सकता है? ---
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साधनाएँ अनेक हैं, मार्ग अनेक हैं, अनेक मंत्र हैं, अनेक विद्याएँ हैं, लेकिन परमात्मा की प्राप्ति के लिए हमें एक ही मार्ग चाहिए। कौन सा मार्ग हमारे लिए उपयुक्त और सर्वश्रेष्ठ है इसका निर्णय जब हम नहीं कर पाते तब किसी आचार्य सद्गुरु की शरण लेते हैं। हमारी अब तक की आध्यात्मिक उपलब्धियों का आंकलन कर के एक सद्गुरु ही बता सकता है कि कौन सा मार्ग हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ है।
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अब प्रश्न यह उठता है कि हम गुरु रूप में किसका वरण करें। इस विषय में वेदों का जो आदेश है वह सर्वमान्य है, इसमें कोई विवाद नहीं हो सकता। वेद भगवान का आदेश है कि एक श्रौत्रीय (जिसे श्रुतियों यानि वेदों का ज्ञान हो) और ब्रह्मनिष्ठ आचार्य ही गुरु हो सकता है।
"परीक्ष्य लोकान् कर्मचितान् ब्राह्मणो निर्वेदमायान्नास्त्यकृतः कृतेन |
तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम् ||"
(मुण्डक. १:२:१२)
ऐसे गुरु ही हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं। हमें मार्गदर्शन उन्हीं से लेना चाहिए। गुरु की शिक्षा भी तभी फलदायी होगी जब हम सत्यनिष्ठ होंगे।
ॐ तत्सत् !!
१ जून २०२४
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