Tuesday, 27 May 2025

सब कुछ तो "वे" ही हैं ---

 सब कुछ तो "वे" ही हैं .....

=
अंतर्चेतना में भगवान की जो छवि मेरे समक्ष है, वह इस जीवनकाल में ही नहीं, अनंतकाल तक बनी रहे, और यह पृथक अस्तित्व भी उसी में विलीन हो जाये| यह कोई कामना नहीं बल्कि हृदय की गहनतम अभीप्सा है|
भगवान कहते हैं .....
"शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया|
आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत्||६:२५||"
अर्थात् शनै शनै धैर्ययुक्त बुद्धि के द्वारा उपरामता (शांति) को प्राप्त होवे| मन को आत्मा में स्थित करके फिर अन्य कुछ भी चिन्तन न करे||
शनैः शनैः धैर्ययुक्त बुद्धि द्वारा मन को आत्मा में स्थित करके अर्थात् यह सब कुछ आत्मा ही है उससे अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है, इस प्रकार मन को आत्मामें अचल करके अन्य किसी भी वस्तु का चिन्तन न करे|
.
मुमुक्षुत्व और फलार्थित्व .... दोनों साथ साथ नहीं हो सकते| जब मुमुक्षुत्व जागृत होता है तब शनैः शनैः सब कामनाएँ नष्ट होने लगती हैं, क्योंकि तब कर्ताभाव ही समाप्त हो जाता है| भगवान कहते हैं ....
"ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्| मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः||४:११||"
अर्थात् जो मुझे जैसे भजते हैं मैं उन पर वैसे ही अनुग्रह करता हूँ| हे पार्थ सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुवर्तन करते हैं||
.
जहाँ राग-द्वेष और अहंकार है वहाँ आत्मभाव नहीं हो सकता| जो भगवान के लिए व्याकुल हैं, भगवान भी उन के लिए व्याकुल हैं| भगवान् कहते हैं ....
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
अर्थात् सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ| मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो||
.
हम सब तरह की चिंताओं को त्याग कर भगवान में ही स्थित हो जाएँ, यही गुरु महाराज की शिक्षाओं का भी सार है| ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मई २०२०

No comments:

Post a Comment